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(२२) अपूर्व 'कल्पवृक्ष' के समान तप है। (तप का मूल संतोष है, देवेन्द्र और नरेन्द्र आदि की पदवी तपरूपी कल्पवृक्ष के पुष्प-फूल हैं तथा मोक्ष-प्राप्ति, तपरूपी कल्पवृक्ष का पल है।)
(२३) समस्त लक्ष्मी का बिना सांकल का 'बन्धन' तप है।
(२४) पापरूपी प्रेत-भूत को दूर करने के लिये अक्षर रहित 'रक्षामन्त्र' तप है।
(२५) पूर्वे उपार्जन किये हुए कर्मरूपी पर्वत को भेदने के लिये 'वज्र' के समान तप है ।
(२६) कामदेवरूपी दावानल की ज्वाला समूह को बुझाने के लिये 'जल-पानी' के तुल्य तप है ।
(२७) लब्धि और लक्ष्मीरूपी लता-वेलड़ी का 'मूल' तप है।
(२८) विघ्नरूपी तिमिर-समूह का विनाश करने में दिन समान तप है। ये सब तप की उपमाएँ प्रतिपादित की गई हैं।
तप करने से लाभ श्री जैनशासन में 'सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रारिण
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-३०२