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प्रधानता का भान तप की सच्ची प्रेमी आत्माओं को ही होता है, अन्य को नहीं ।
तपपद के पचास गुण श्री सिद्धचक्र-नवपद पैकी नवें तपपद के पचास गुरण क्रमशः निम्नलिखित हैं
(१) यावत्कथित तपगुण । (२) इत्वरकथिक तपगुण । (३) बाह्य-प्रौनोदर्य तपगुण । (४) अभ्यन्तर प्रौनोदर्य तपगुण । (५) द्रव्यतः वृत्तिसंक्षेप तपगुण । (६) क्षेत्रतः वृत्तिसंक्षेप तपगुण । (७) कालतः वृत्तिसंक्षेप तपगुण । (८) भावतः वृत्तिसंक्षेप तपगुण । (९) कायक्लेश तपगुण। (१०) रसत्याग तपगुण । (११) इन्द्रियकषाययोगविषयक संलीनता तपगुण ।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२६४