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________________ शुभ ध्यान के दो भेद हैं-धर्मध्यान और शुक्लध्यान । धर्मध्यान के चार भेद नीचे प्रमाणे हैं (१) प्राज्ञाविचयधर्मध्यान--'सर्वज्ञ श्रीजिनेश्वर-तीर्थंकर भगवन्त की आज्ञा और उनका वचन सत्य है।' ऐसी श्रद्धापूर्वक जो चिन्तवना-विचारना करनी, वह पहला 'प्राज्ञाविचयधर्मध्यान' कहलाता है । (२) अपायविचयधर्मध्यान-- राग-द्वष आदि प्रास्रव इस संसार में अपायभूत-कष्टरूप हैं' इस तरह जो चिन्तवना, वह दूसरा 'अपायविचयधर्मध्यान' है । (३) विपाकविचयधर्मध्यान--'सुख और दुःख दोनों पूर्व कर्म के विपाक फल हैं' इस तरह जो चिन्तवना वह तीसरा 'विपाकविचयधर्मध्यान' कहा है । (४) संस्थानविचयधर्मध्यान--'षड्द्रव्यात्मक लोक के स्वरूप' को विचारना वह चौथा 'संस्थानविचयधर्मध्यान' है। अब शुक्लध्यान के चार भेदों का प्रतिपादन करते हैं। (१) पृथक्त्व वितर्क सविचार शुक्लध्यान--इसमें पृथक्त्व, वितर्क और सविचार ये तीन शब्द पड़े हैं। पृथक्त्व यानी भिन्नता, अर्थात् जिस द्रव्य गुण या पर्याय का ध्यान चालू हो उसी द्रव्य गुण या पर्याय में स्थिर न श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२८९
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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