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जाता है । जैनशास्त्रों में ऐसे अनशन के दो भेद कहे हैं-
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अनशनं द्विधा प्रोक्तं, यावज्जीविकमित्वरम् । द्विघटिकादिकं स्वल्प, चोत्कृष्टं यावदात्मकम् ।।
अनशन दो प्रकार का कहा है । यावज्जीवपर्यन्तयावत्कालिक और इत्वरकालिक । उसमें दो घड़ी आदि का जघन्य अनशन और जीवन पर्यन्त का उत्कृष्ट अनशन है ।
( १ ) इत्वरिक अनशन - अल्प समय का यह अनशन भी सर्व से और देश से इस प्रकार दो तरह का है । चारों प्रकार के आहार के त्याग रूप चोविहार उपवास, छट्ट ( बेला), अट्टम ( तेला) इत्यादि सर्व से इत्वरकालिक अनशन कहा जाता है तथा नमुक्कारसहियं, पोरिसी, साड्ढपोरिसी आदि देश से इत्वरकालिक अनशन कहा जाता है ।
(२) यावत्कालिक अनशन - यह जावज्जीव यानी जीवन पर्यन्त का अनशन गिना जाता है । भक्तप्रत्याख्यान, इंगिनी और पादोपगमन ये तीन प्रकार के अनशन यावत्कालिक होते हैं । इस तरह छह प्रकार के बाह्यतप में से पहले अनशन तप का प्रतिपादन किया है ।
आत्मा के साथ अनादिकाल से लगी हुई प्रहारसंज्ञा
श्री सिद्धचक्र - नवपदस्वरूपदर्शन- २६४