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और वीर्याचार इन पंचाचारों का सम्यग् पालन कराने वाले 'चारित्रपद' को मैं नमस्कार करता हूँ।
(२) संवेग रंग तरंग के सागर में सदा स्नान कराने वाले 'चारित्रपद' को मैं नमस्कार करता हूँ।
(३) ज्ञानावरणीयादि अष्टकर्म का सर्वथा समूल विनाश करने वाले 'चारित्रपद' को मैं नमस्कार करता हूँ।
(४) प्राणातिपात विरमणादि पंच महाव्रत का पवित्र पालन कराने वाले 'चारित्रपद' को मैं नमस्कार करता हूँ।
(५) मोक्ष में ले जाने वाले और आत्मा को अक्षय सुख, शाश्वत सुख एवं सचिदानंद स्वरूप प्राप्त कराने वाले 'चारित्रपद' को मैं नमस्कार करता हूँ।
अन्त में, अनन्त कल्याण के साधक ऐसे सम्यक सामायिकादि चारित्रधर्म का क्रमशः सेवन करते हुए विश्वभर के मोक्षाभिलाषी प्रात्मार्थी जन-भव्यजीव वीतरागदशा के यथाख्यात चारित्र के अभूतपूर्व-अपूर्व आस्वाद का अनुभव करते हुए परमपद-मोक्षपद को प्राप्त करें, यही मंगल कामना ।
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श्री सिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२५१