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________________ (४४) अननुगामी अवधिज्ञान । (४५) वर्धमान - अवधिज्ञान । (४६) हीयमान - अवधिज्ञान । (४७) प्रतिपाति - अवधिज्ञान । (४८) अप्रतिपाति • अवधिज्ञान । (४६) ऋजुमतिमन पर्यवज्ञान । (५०) विपुलमतिमनःपर्यवज्ञान । (५१) लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञान । ज्ञानपद के ये उपरि कथित एकावनगुण(भेद)जानना । श्रीज्ञानपद का आराधन ___श्रीज्ञानपद की आराधना एकावन प्रकार से होती है । कारण यही है कि सम्यग्ज्ञान के भेद एकावन (५१) हैं । इसलिये इन सब की आराधना करने के लिये प्राराधक महानुभाव एकावन प्रकार से सम्यग्ज्ञान का आराधन करते हैं। इस ज्ञान की प्राप्ति के लिये भव्यजनों को ज्ञानाचार के निरतिचारपने पालन पूर्वक, पढ़ना-पढ़ाना, लिखना-लिखाना, सुनना-सुनाना, पूजना-पुजाना, प्रचार करना-कराना एवं छपाना इत्यादि कार्य अवश्य करने श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२०३
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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