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'प्रात्मपरिणतिमत् ज्ञान' और पाप के त्याग वाला ज्ञान 'तत्त्वसंवेदन ज्ञान' है; ये दोनों ज्ञान सम्यग्ज्ञान हैं ।
श्रीजिनेश्वरदेव द्वारा कथित आगमशास्त्र में सम्यग्ज्ञान की मतिज्ञान, श्रु तज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान एवं केवलज्ञान ये पाँच प्रकारे प्रसिद्धि सुप्रसिद्ध है ।
ज्ञानपद के एकावन गुरा (भेद) शास्त्र में ज्ञानपद के एकावन (५१) गुण (भेद) प्रतिपादित किये गये हैं । वे निम्नलिखित हैं(१) स्पर्शनेन्द्रिय - व्यञ्जनावग्रहमतिज्ञान । (२) रसनेन्द्रिय - व्यञ्जनावग्रहमतिज्ञान । (३) घ्राणेन्द्रिय - व्यञ्जनावग्रहमतिज्ञान । (४) श्रोत्रेन्द्रिय - व्यञ्जनावग्रहमतिज्ञान । (५) स्पर्शनेन्द्रिय - अर्थावग्रहमतिज्ञान । (६) रसनेन्द्रिय - अर्थावग्रहमतिज्ञान । (७) घ्राणेन्द्रिय - अर्थावग्रहमतिज्ञान । (८) चक्षुरिन्द्रिय - अर्थावग्रहमतिज्ञान । (९) श्रोत्रेन्द्रिय - अर्थावग्रहमतिज्ञान ।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२००