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हैं । इस ज्ञान द्वारा केवली भगवन्त भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यत्काल-इन तीनों कालों सम्बन्धी सर्व द्रव्य के सर्व भावों को एक ही समय में जानते हैं ।
(१) द्रव्य से-केवलज्ञानी रूपी-अरूपी सर्व द्रव्य को जाने-देखे ।
(२) क्षेत्र से-केवलज्ञानी लोक-प्रलोक सर्वक्षेत्र जाने
देखे ।
(३) काल से-केवलज्ञानी सर्व अतीत-अनागत-वर्त्तमान काल समकाले जाने-देखे ।
(४) भाव से-विश्व के सर्व जीव-अजीव के सर्व भावों को जाने-देखे ।
इस तरह केवली भगवन्त केवलज्ञान से विश्व के सर्व द्रव्य, सर्व क्षेत्र, सर्व काल और सर्व भाव जानते-देखते हैं ।
केवलज्ञान की महत्ता-विशिष्टता
इस ज्ञान की महत्ता तथा विशिष्टता अनन्य और अद्भुत है।
(१) केवल यानी एक । मत्यादि चारों ज्ञानों के अनेक भेद हैं, किन्तु केवलज्ञान तो एक ही है। उसका
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१६०