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औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक इन तीन विशेषताओं वाला सम्यग्दर्शन जिनागम में कहा है ऐसे सम्यग्दर्शन को हम नमन कर रहे हैं ।। ६६ ।। परणवारा उवसमियं, खोवसमिश्र असंखसो होइ । जं खाइयं च इक्कसि, तं सम्मं दंसरणं नमिमो ।। ७० ॥ ___ औपशमिक सम्यग्दर्शन पांच बार, क्षायोपशमिक असंख्य बार और क्षायिक एक ही बार प्राप्त होता है, ऐसे सम्यग्दर्शन को हम नमन कर रहे हैं ।। ७० ।। जं धम्मद ममूलं, भाविज्जइ धम्मपुरपवेसं च।। धम्मभवरणपीढं वा, तं सम्मं दंसरणं नमिमो ॥७१॥
जो धर्मवृक्ष का मूल, धर्मनगर का द्वार और धर्ममहल का स्तम्भ कहा जाता है उस सम्यग्दर्शन को हम नमन कर रहे हैं ।। ७१ ।। जं धम्मजयाहारं, उवसमरसभायरणं च जं बिति । मुरिणरणो गुरणरयरणनिहि, तं समरणं दंसरणं नमिमो ।। ७२ ॥
जिसे मुनिजन पृथ्वी की तरह समस्त धर्म का प्राधार, उपशम रस का भाजन और गुण रूपी रत्नों का निधान कहते हैं उस सम्यग्दर्शन को हम नमन कर रहे हैं ॥७२।। जेग्ण विणा नाणं वि हु, अपमारणं निप्फलं च चारितं । मुक्खो वि नेव लभइ, तं सम्मं दंसरणं नमिमो ।। ७३ ।।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१६०