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प्रकाशकीय निवेदन
'श्रीसिद्धचक-नवपद स्वरूप दर्शन' नाम से समलंकृत यह पुस्तक प्रकाशित करते हुए हमें अति प्रानंद हो रहा है। इस ग्रन्थ के लेखक परम पूज्य शासनसम्राट् समुदाय के सुप्रसिद्ध जैनधर्म दिवाकर शासनरत्न-नीर्थप्रभावक-राजस्थानदीपक-मरुधरदेशोद्धारक-शास्त्रविशारद-माहित्यरत्न-कविभषगा-बालब्रह्मचारी पूज्यपाद प्राचार्यदेव श्रीमद् विजयसुशोल पुरोश्वरजी म. सा. हैं । अापने विक्रम संवत २०३६ की साल का चातुर्मास श्रीसंघ की साग्रह विनती स्वीकार कर श्री तखतगढ़ नगर में परम शासनप्रभावनापूर्वक सम्पन्न किया। अपने पट्टधर-शिष्यरत्न-मधुरभाषी संयमी पूज्य उपाध्यायजी महाराज श्री विनोदविजयजी गरिगवयं ने चातुर्मास पूर्व इस ग्रन्थ को सुन्दर सरल हिन्दी भाषा में लिखने के लिये प्रेरणा की थी। तदनुसार परम पूज्य आचार्य भगवन्त ने इस चातुर्मास में साहित्यशास्त्र रचना आदि अनेक कार्य होते हए भी समय निकालकर अतिपरिश्रमपूर्वक अनेक शास्त्रीय ग्रन्थों के अवलोकन तथा चिन्तन-मनन युक्त सरल हिन्दी भाषा में इस ग्रन्थ को तैयार किया है।
__ प्रस्तुत ग्रन्थ में श्री सिद्धचक्र के नौ पदों का क्रमशः विवरण विस्तारपूर्वक अति सुन्दर लिखा है । परिशिष्टों में चैत्र-पासोज मास की शाश्वती अोली की क्रमशः नौ दिनों की विधि तथा श्रीसिद्धचक्र के प्राचीन आदि चैत्यवन्दन-स्तवन-स्तुतियाँ आदि भी लिये हैं। श्रीश्रीपाल-मयणा की स्तवनरूपे ढाल भी ली है। अन्त में, पूज्यपाद प्राचार्यमहाराज श्री के वि. सं. २०३६ की साल के परमशासन प्रभावना पूर्वक सम्पन्न हए शानदार यशस्वी चातुर्मास का संक्षिप्त वर्णन भी सम्मिलित किया गया है । तदुपरान्त वि. सं. २०४० की साल में श्री उपधानतपमाला का वर्णन, तखतगढ़ से जालोर-श्रीसुवर्णगिरि तीर्थ के पैदल छरी' पालित संघ का वर्णन तथा तखतगढ़ में
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