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है। सम्यक्त्वहीन चारित्र संसार का अन्त कभी नहीं कर सकता है । सम्यक्त्वहीन की तपश्चर्या प्रात्मकल्याण के बदले स्व और पर का अकल्याण करने वाली होती है। सम्यक्त्व बिना विनय और विवेक भी संसार की वृद्धि के कारण होते हैं । ___ सम्यक्त्व बिना प्राचार्य प्राचार्य नहीं कहलाते हैं, उपाध्याय उपाध्यायपदे स्थित नहीं रह सकते हैं तथा साधु साधुता को नहीं साचव सकते हैं। कारण यही है कि श्रीगुरुतत्त्व का मूल आधार अर्थात् प्राचार्य, उपाध्याय
और साधु इन तीनों पदों का मूल आधार यही सम्यग्दर्शन गुण है । सम्यग्दर्शन का इतना अनुपम प्रभाव है कि इसके बिना कभी किसी आत्मा की मुक्ति नहीं हो सकती है। विश्व में तात्त्विक संपत्ति रूप सुदेव, सुगुरु और सुधर्म हैं। उनके प्रति अन्तरंग रुचि होना, उसका नाम 'सम्यक्त्व या सम्यग्दर्शन' है । इस सम्बन्ध में कहा है कि--
"देवत्वधीजिनेष्वेव, मुमुक्षुषु गुरुत्वधीः । धर्मधीराहतां धर्मे, तत्स्यात् सम्यक्त्वदर्शनम् ॥ १॥"
[श्रीउपदेशप्रासाद, व्याख्यान-२, श्लोक-१] जिनेश्वरों के प्रति देवबुद्धि रखना तथा संसार से अपनी प्रात्मा को मुक्त करने की इच्छा रखने वाले मुमुक्षुओं में
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श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१४१