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दूध तथा अमृत के समान सूत्र, अर्थ तथा वैराग्यमय ज्ञान का पान भव्यजनों को कराने वाले आप ही हो। भविष्य में जैनशासन के सम्राट समान प्राचार्य बनने वाले और तीसरे भव में मोक्षलक्ष्मी प्राप्त करने वाले आप हो ।
__ चतुर्थ पद का आराधक आत्मा स्वयं आराधना करते हुए ऐसी भावना भावे कि-'मैं भी उपाध्याय पद के योग्य क्यों न बनूं ?' यही प्रार्थना के साथ शुभ कामना है ।
श्रीसिदचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-११४