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________________ 'उपाध्याय' शब्द की व्याख्या, व्युत्पत्ति और अर्थ उप और अधि उपसर्ग पूर्वक 'इड्--अध्ययने' धातु से घना प्रत्यय होने पर उपाध्याय शब्द बनता है । इसकी व्याख्या इस प्रकार को है- “उप-समीपमारत्याधीयते 'इड्. अध्ययने' इति वचनात् पठ्यते 'इण गता' विति वचनाद्वा अधि-पाधिक्येन गम्यते, ‘इक स्मरणे' इति वचनाद्वा स्मर्यते सूत्रतो जिनप्रवचनं येभ्यस्ते उपाध्यायाः ।" [ इति श्रीव्याख्याप्रज्ञप्तिः अभयदेवीयावृत्तिः प्रथम शतके प्रोक्तम् ] उप+अधि+इड्+घञ बना । उप+अधि में पूर्व पर के स्थान में सवर्ण दीर्घ होने पर उपाधि+इड्+घञ बना । पश्चाद् इङ् के ड्. की और घन के घ ने की इत् संज्ञा तथा लोप होने पर उपाधि+ई+अ रहा । अजन्तांग को वृद्धि होने पर उपाधि +ऐ+अ रहा । पश्चात् यण् होने से उपाध्यै + अ हुआ । ऐ का प्राय हुअा, प्रा मिला ध्य में य् मिला घन के शेष रहे अ में, तब उपाध्याय शब्द सँस्कृत व्याकरण के नियमानुसार बना । प्राकृत व्याकरण में उपाध्याय का उवज्झाय इस प्रकार बनता है श्री सिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१०३
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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