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र ल व श ष स ह' ये तैंतीस (३३) व्यंजन, 'लु क्ष ज्ञ '
ये तीन बहुमान वर्ण, 'अनुस्वार और विसर्ग' ये सब मिल कर (१४+३३+३+२=५२) बावन वर्ण के अंग वाला शास्त्ररूप बावना चन्दन है | उस का अर्थरस पापताप को शमाने में समर्थ है । उपाध्यायजी महाराज इसी बावना चन्दन रस से लोकों के पापताप को शमाते हैं ।
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विश्व के पापरूप ताप से तप्त बन कर, उद्व ेग पाए हुए जीव उपाध्यायजी महाराज की शरण में ग्राकर, पाप के ताप को उपशान्त करके, उपशम रस के अनुपम आस्वाद का अनुभव करने वाले हो जाते हैं । इसलिए पापरूपी ताप को शमाने के लिए शास्त्ररूपी बावना चन्दन रस का अनुपम श्रास्वादन कराने वाले महादानी उपाध्यायजी महाराज सदैव अर्चनीय वन्दनीय हैं ।
(६) युवराज समान तथा प्राचार्य पद के योग्य - श्रीवीत - रागदेव के शासन में सूर्य और चन्द्र के समान जिनेश्वर और केवली भगवन्तों के प्रभाव में दीपक समान आचार्य महाराज जैसे शासन के सम्राट् हैं, वैसे युवराज के समान उपाध्यायजी महाराज भी हैं ।
जैसे राजकुमार-युवराज भविष्य में राजा बनने के योग्य है, वैसे उपाध्यायजी महाराज भी भविष्य में प्राचार्य
श्री सिद्धचक्र - नवपदस्वरूपदर्शन - १०१