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अनेक भव्यात्माएँ सम्यग्ज्ञानादि द्वारा मुक्ति रमणो की भोक्ता बन जाती हैं। (४) अंध नयनों को उघाड़ने वाले- विश्व में उपाध्यायजी
महाराज महादानी हैं । वे सब पदार्थों से विलक्षण अद्भुत ज्ञान वस्तु का दान करते हैं। यह ज्ञान ही जीव मोक्ष में जावे वहाँ तक अक्षय रहता है । ज्ञान के अतिरिक्त अन्य कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है जो दीर्घकाल तक जीव के पास टिक सके । खानपान या भोगविलास प्रादि साधन-सामग्री भी किसी को दी होवे तो वह भी दिनपर्यंत, मासपर्यंत, वर्षपर्यंत या विशेषरूप में जीवनपर्यंत तक रहे; पीछे तो उसका भी विनाश हो जाता है। इसलिए उपाध्यायजी महाराज मुक्तिपर्यंत पहुँचाने वाले ज्ञान को ही देने में सदा उद्यमशील रहते हैं। उनका दिया हुआ ज्ञानरूपी धन उत्तरोत्तर बढ़ता है, कभी खूटता नहीं है। अज्ञान से अन्धी बनी हुई सनेत्र जीवात्मा को कुछ भी सुझता नहीं है, इसलिए वह भव-वन में अटकते हुए इधरउधर भटकती रहती है।
उपाध्यायजी महाराज स्वयं ऐसी आत्मा के नेत्र-रोग की चिकित्सा करते हैं। प्रशस्त शास्त्ररूपी शस्त्र से उसके
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-९९