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लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं। मिले हुए इस पद की सार्थकता इसी में है, अन्तःकरणपूर्वक ऐसा मान कर उपाध्याय परमेष्ठी अपने श्र तज्ञानरूपी उपवन को नवपल्लवित रख कर ज्ञान प्रदान करके पत्थर-पाषाण जैसे जड़बुद्धि शिष्यों को भी सुविनीत बनाने की शक्ति धारण करने वाले होते हैं अर्थात् जिनके द्वारा शिष्य भी सूत्र के ज्ञानरूप प्राण को धरने वाले हो जाते हैं। इस तरह शिष्यों को भी सूत्रार्थ के ज्ञाता बना कर सर्वजनपूजनीय बना देते हैं । इसलिए वे पूजनीय एवं वन्दनीय हैं ।
अनेक उपमाओं से समलंकृत
श्री उपाध्याय जी महाराज अनेक उपमाओं से ‘समलंकृत हैं
(१) गारुड़ी समान- श्री उपाध्यायजी महाराज महा
गारुडी-जांगुली मन्त्रवादो के समान हैं क्योंकि वे मोहरूपी सर्प के दंश से ज्ञानरूप चेतना से हीन हुए जीवों में चेतना प्रगट कर सकते हैं और उसी के द्वारा स्व-पर के हित साधन बना सकते हैं । अर्थात्- मोहरूपो विषधर के दंश से व्याप्त विष वाला और आत्मज्ञान से होन बना हुआ जीव उपाध्यायजी महाराज के समागम में आते ही
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-६७