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का स्थान है । जैन शासन में सूर्य समान श्री जिनेश्वरदेव और चन्द्र समान श्रीकेवली भगवन्त के अभाव में दीपक के समान श्रीप्राचार्य महाराज शासन के सम्राट या शासन के शिरोमणि हैं । सर्वज्ञ विभु श्रीतीर्थंकर परमात्मा के हस्ते दीक्षित बने हुए और त्रिपदी के द्वारा श्रीद्वादशांगी की सम्पूर्ण रचना करने वाले प्राचार्य महाराज गणधर तरीके कहे जाते हैं। द्वादशांगी की प्राप्ति मोक्षार्थी आत्माओं को गणधर महाराजा के पुण्यप्रताप से होती है । श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर भगवन्तों की दश विशेषणों से समलंकृत प्राज्ञा का लोक में प्रचार करने के लिए प्राचार्य महाराज अधिकारी हैं।
श्रीअरिहन्त-तीर्थंकरदेवों की आज्ञा दश विशेषणों से समलंकृत है । वे विशेषण इस प्रकार हैं
सुनिउरणमरणाइनिहरणं, भूयहियं भूयभालणमहग्धं । अमियमजियं महत्थं, महागुभावं महाविसयं ॥
श्रीअरिहन्त-तीर्थंकरदेवों की आज्ञा (१) विश्व के सूक्ष्मद्रव्य इत्यादि (वस्तु-पदार्थों) को
दर्शाने वाली होने से उत्तम निपुरणवती है ।
(२) सर्वदा स्थायी होने से अनादि अनन्त है ।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-७६