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न य कोहाइ कसाया,
ते सिद्धा इंतु मे सरणं ॥ ४ ॥ अर्थ- जिनके जन्म, जरा, व्याधियाँ और मरण नहीं हैं तथा पीड़ा व क्रोधादि कषाय नहीं हैं वे सिद्ध परमात्मा मुझे शरण प्रदान करें ।। ४ ।। (१) चार पदार्थ मंगलरूप हैं। उनमें सिद्धभगवन्त का
भो स्थान है
'सिद्धा मंगलं' सिद्ध मङ्गलरूप हैं। (२) चार पदार्थ लोक में उत्तम हैं। उनमें सिद्धभगवन्त
का भी स्थान है
'सिद्धा लोगुत्तमा' सिद्ध लोकोत्तम हैं । (३) चार शरण में भी सिद्ध भगवन्त का स्थान है।
'सिद्ध सरणं पव्वज्जामि' सिद्धों का शरण स्वीकार करता हूँ।
अन्त में-बीजरूप श्री अरिहन्तपद के फलभूत श्रीसिद्धपद है । सिद्धगति के लिए इस सिद्धपद की आराधना श्रीअरिहन्त परमात्मा द्वारा फरमाये हुए मार्ग से ही होती है । इसलिए श्रीनवपद में श्रीसिद्धभगवन्त दूसरे पद से पूज्य हैं।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-७६