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बोध पाये हो और अन्य को भी बोध प्रकटाने वाले हो, स्वयं मुक्त बने हो और दूसरों को भी मुक्ति दिलाने वाले हो, सर्वज्ञ हो और सर्वदर्शी भी हो, वीतराग हो, देवाधिदेव हो और तीर्थंकर भगवन्त भी हो । मोक्षनगर में जाने वाले, वहाँ सादि अनन्त स्थिति में सर्वदा रहने वाले और शाश्वत अनन्त सुख प्राप्त करने वाले आप ही हो । बारह गुणों से समलंकृत भी आप ही हो । आपश्री ने चतुर्विध श्रमण संघरूपी तीर्थ को स्थापना की है। समस्त विश्व के जीवों पर आपका अनन्त उपकार है । हे प्रभो ! हम पर भी आपका असीम उपकार है। ____ जो भवसिन्धु से स्वयं तरे हैं और जिन्होंने दूसरे को तारने के लिए अनुपम मार्ग का प्रकाशन किया है, ऐसे भवसिन्धुतारक श्रीअरिहन्तदेव श्रीनवपद में प्रथमपदे पूज्य हैं। __ ऐसे श्रीअरिहन्त परमात्मा को हमारा अहर्निश नमस्कार हो ।
[२] श्रीसिद्धपद
卐 नमो सिद्धाणं 卐 अनन्तं केवलज्ञानं, ज्ञानावरणसंक्षयात् । अनन्तं दर्शनं चापि, दर्शनावरणक्षयात् ।। १ ॥ क्षायिके शुद्धसम्यक्त्व-चारित्रे मोहनिग्रहात्।। अनन्ते सुखवीर्ये च, वेद्यविघ्नक्षयात् क्रमात् ॥ २ ॥
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-५२