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________________ इन अधिकारों के नाम से उनके प्रतिपाद्य विषयों का ज्ञान हो जाता है। 4. नियमसार 5. अष्ट पाहुड 6. बारस अणुवेक्खा 7. दस भक्ति इन रचनाओं के सिवाय कुछ विद्वान् ‘रयणसार' को भी कुन्दकुन्द की रचना बतलाते है। कुन्दकुन्द की उपलब्ध सभी रचनाएँ तात्विक चिन्तन से ओतप्रोत है। समयसार और नियमसार में जो शुद्ध आत्मा का जैसा और जिस प्रकार का विशद् और विस्तृत विवेचन है वैसा और उस प्रकार का वह अन्यत्र अलभ्य है। आत्मा के बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा इन तीन भेदों का (मोक्षपाहुड गाथा 45) कथन उनसे पहले किसी अन्य में उपलब्ध नहीं है। सम्यग्दर्शन के आठ अंगों का निरूपण (स.सा. 229-236), अणुमात्र राग रखने वाला सर्वशास्त्रज्ञ भी स्वसमय का ज्ञाता नहीं (पंचा.167), जीवकों सर्वथा कर्मबद्ध अथवा सर्वथा कर्म-अबद्ध बतलाना नयपक्ष (एकान्तवाद) है और दोनों का ग्रहण न करना समयसार है (स.सा. 141-143) तीर्थकर भी वस्त्रधारी हो तो वह सिद्ध नहीं हो सकता (द. पा. 23) आदि तात्विक विवेचन कुन्दकुन्द की अनुपम देन है। कुन्दकुन्द महान् व्यक्तित्व- सम्पन्न व्यक्ति थे। अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावों में वे पवित्र थे। उनका व्यक्तित्व शान्त, भव्य उदात्त एवं तेजस्वी था। अपना परिचय देते हुए वे कहते हैं एगो में सासदो अप्पा णाण-दसण-लक्खणो। सेसा में बाहिरा भावा सव्वे संजोग- लक्खणा ॥ नियमसार, गाथा,102 भावपाहुड़गा. 59 आचार्य कुन्दकुन्द आगम-परम्परा के संवाहक आचार्य थे। उन्होंने जिन सिद्धान्त और अनेकान्त दर्शन के सम्बन्ध में वही कहा है जो आगम-परम्परा में प्रचलित था। उन्होंने अपनी ओर से कुछ भी नहीं कहा । वे विनम्र भाव से समययार (गाथा- 5) में स्पष्ट कहते हैं कि मैं उस एकत्व विभक्त आत्म-स्वरूप को अपनी आत्मा के निज वैभव में दर्शाता हूँ। यदि मैं उस शुद्धता का वर्णन बतला 680 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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