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________________ चिन्तन, मनन एवं ग्रन्थ-सृजन किया। जैन पट्टावलियों के अध्ययन से स्पष्ट है कि अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु को आम्नाय-परम्परा में परम तपस्वी आचार्य कुन्दकुन्द हुए। उनके ही पवित्र वंश में आचार्य उमास्वामी हुए। मूलसंघ के नायक अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु के शिष्य श्री माघनन्दी भट्टारक हुए और पूज्य माघनन्दी के शिष्य मुनीन्द्र जिनचन्द्र हुए। कुन्दकुन्द के दीक्षागुरु यही जिनचन्द्र कहे गये है। कुन्दकुन्द की शौरसेनी प्राकृत रचनाओं में बारसअनुवेक्खा में इनके नाम का उल्लेख मिलता है। इन्होनें अपने अष्ट पाहुड के बोधपाहुड में अपने गुरू का नाम श्रुतुकेवली भद्रबाहु बतलाया है। इसी पट्टावली में कुन्दकुन्द के पाँच नामों का उल्लेख मिलता है-एलाचार्य, गृध्रपिच्छ, वक्रगीव, पद्मनन्दी और कुन्दकुन्द। बहुत कुछ खोजबीन करने पर भी आचार्य कुन्दकुन्द के बचपन के नाम का पता नहीं चलता है। श्रवणबेलगोल के चन्द्रगिरि पर्वत के पार्श्वनाथ मन्दिर के नवरंग में अंकित प्रशस्ति तथा शिलालेखों में एवं पट्टावलियों में कोण्डकुन्द यतीन्द्र; से यह निश्चित है कि यह मुनि अवस्था का नाम है। किन्तु नन्दिसंघ की पट्टावली से यह ज्ञात होता है कि दीक्षा अवस्था के समय का नाम पद्मनन्दी था। ___ आचार्य कुन्दकुन्द दक्षिण भारत के निवासी थे। आचार्य इन्द्रनन्दी के उल्लेख से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि कुन्दकुन्द कोण्डकुण्डपुर निवासी थे। श्री पी. वी. देसाई के विवरण से पता चलता है कि दक्षिण भारत में अनन्तपुर जिले के - गुटी तालुके में स्थित गुन्टकाल रेलवे स्टेशन से दक्षिण की ओर लगभग चार मील दूर कोण्डकुण्डल ही वह स्थान है जहाँ पर कुन्दकुन्द का जन्म हुआ था। वहाँ के रहने वाले लोग आज भी इस स्थान को कोण्डकुन्दि कहते है। कन्नड़ में कुण्ड तथा कोण्ड शब्द का अर्थ पहाड़ी या पर्वतीन उपत्यका स्थान है। कहा जाता है कि 'पोन्नूर' नामक ग्राम में आचार्य कुन्दकुन्द ने घोर तपस्या की थी। पोन्नूर ग्राम की स्थिति तमिलनाडु के आकार्ड जिले में मद्रास से 80 मील दूर वर्तमान पोन्नर हिल कही जाती है। पोन्नूर का अर्थ है-सोना । अतः इसे हेमग्राम भी कहते है। आचार्य कुन्दकुन्द की तपोभूमि के साथ-साथ यह रचनास्थली भी रही है। पोन्नूर हिल पर आसीन होकर उन्होंने समयसार प्रवचनसार, नियमसार, प्राकृत रत्नाकर 0 65
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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