SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 86. काव्यप्रकाश .. काव्यप्रकाश 12वीं शताब्दी के प्रसिद्ध अलंकारशास्त्री मम्मट की महत्त्वपूर्ण रचना है। काव्यप्रकाश में प्राकृत की 49 गाथाएँ उद्धृत हैं । इस ग्रन्थ पर अनेक टीका ग्रन्थ लिखे गये हैं। 87. काव्यानुशासन ___ 12वीं शताब्दी के विद्वान् आचार्य हेमचन्द्र ने मम्मट के काव्यप्रकाश के आधार पर काव्यानुशासन की रचना कर काव्य की समीक्षा प्रस्तुत की है। इस पर उनकी स्वोपज्ञवृत्ति भी है। मूल ग्रन्थ एवं वृत्ति में मिलाकर प्राकृत के 78 पद्य उद्धृत हैं। ये पद्य प्रायः शृंगार, नीति एवं वीरता सम्बंधी हैं। उदाहरण गाथासप्तशती, कर्पूरमंजरी, रत्नावली आदि से लिये गये हैं। युद्ध के लिए प्रस्थान करते हुए नायक की मनोदशा का यह चित्र दृष्टव्य है। यथा - एकत्तो रुअइ पिया अण्णत्तो समरतूरनिग्घोसो। नेहेण रणरसेणय भडस्स दोलाइयं हिअअम्॥(3.2 टीका 187) ' अर्थात् – एक ओर प्रिया रो रही है, दूसरी ओर युद्ध की रणभेरी बज रही है। प्रेम व युद्ध रस के बीच में योद्धा का हृदय दोलायमान हो रहा है। 88. काव्यालंकार काव्यालंकार के रचयिता आचार्य रुद्रट हैं। इनका समय लगभग 9वीं शताब्दी माना गया है। इन्होंने अपने ग्रन्थ काव्यालंकार में अलंकारशास्त्र के समस्त सिद्धान्तों, भाषा, रीति, रस, वृत्ति, अलंकार आदि का विस्तार से वर्णन प्रस्तुत किया है। अलंकारों का वर्णन इनके ग्रन्थ की विशेषता है । कवि ने भाषा के छः भेद बताये हैं - प्राकृत ,संस्कृत, मागधी, पैशाची, शौरसेनी एवं अपभ्रंश।इन छ: भाषाओं के उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए उन्होंने संस्कृत-प्राकृत -मिश्रित गाथाओं की रचना की है। 89.कोव्यादर्श काव्यादर्श के रचयिता आचार्य दण्डी अलंकारशास्त्र जगत के बहुत बड़े विद्वान माने जाते हैं। इनका समय ई. सन् की 7-8वीं शताब्दी के मध्य माना जाता है। अपने इस ग्रन्थ में उन्होंने काव्य की शोभा को बढ़ाने वाले अलंकारों का सुन्दर विवेचन प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में भाषा के संस्कृत, प्राकृत ,अपभ्रंश प्राकृत रत्नाकर 063
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy