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________________ 66. कक्कुक शिलालेख 9 वीं - 10 वीं सदी के कक्कुक शिलालेख में जो कि जोधपुर के पास घटयाला ग्राम में एक स्तम्भ पर टंकित हैं, उसमें प्रतिहार वंश की उत्पत्ति एवं उसके राजवंश की नामावली प्रस्तुत की गई । इस शिलालेख में राजा कक्कुक द्वारा एक जैनमंदिर के निर्माण तथा सभी प्रजाजनों की सुविधा के लिए चहारदीवार से घिरे हुए सुरक्षित एक हाट-बाजार के बनाए जाने की चर्चा की गई है। जैनों के सर्वधर्म-समन्वयकारी तथा सार्वजनिक कल्याणकारी कार्यो के इतिहास की जानकारी की दृष्टि से इस शिलालेख का विशेष महत्व है। वर्तमानकालीन बाजारों की परम्परा भारत में सम्भवतः राजा कक्कुक के समय से प्रारम्भ हुई। इसकी आवश्यकता इसलिए पड़ी होगी, क्योकि वह समय विदेशी आक्रमणों का था, उसके कारण राजनैतिक अस्थिरता सामाजिक अवस्था, आर्थिक दुरवस्था सर्वत्र असुरक्षा एवं भय के व्याप्त होने के कारण नागरिकों को उससे उबारने तथा दैनिक आवश्यकताओं की सामग्री एवं खाद्यान्नादि की पूर्ति - हेतु एक दो द्वारवाले सुरक्षित चतुर्दिक घेरेबन्दी में सुविधा सम्पन्न हाट-बाजार की परम्परा का आविष्कार किया गया । कक्कुक - शिलालेख के अनुसार उस समय राजा कक्कुक ने रोहिंसकूप (घट्याला, जोधपुर राजस्थान) में महाजनों, ब्राम्हणों, सेना तथा व्यापारियों के लिए एक विशाल हाट-बाजार बनवाकर अपनी कीर्ति का विस्तार किया था । यथा - “सिरिकक्कुएण हट्टं माजणं विप्प - पयई - वणि- बहुलं । रोहिंसकूवगामे णिवेसिआई कित्तिविड्ढीए ॥ 20 ॥ " 67. कथानककोश (कहाणयकोस) इसे कथाकोश या कथाकोशप्रकरण भी कहा गया है। बृहट्टिप्पणिका के अनुसार यह प्राकृत ग्रन्थ है जिसमें 239 गाथाएँ हैं । लेखक ने प्रारम्भ में एक गाथा में कहा है कि वह इस कोश में कुछ नयों और दृष्टान्त कथाओं को कह रहा है जिनके श्रवण से मुक्ति सम्भव है । गाथाओं में कथाओं का आकर्षक नामों से उल्लेख किया गया है। कहीं-कहीं एक ही दृष्टान्त की एकाधिक कथायें दी गई प्राकृत रत्नाकर 047
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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