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________________ उपदेश नहीं देता। वह कीचड़ रहित बहता हुआ, छाना हुआ, मगध देश के आधे आढक के प्रमाण में स्वच्छ जल केवल पीने के लिए ग्रहण करता थाली, चम्मच धोने अथवा स्नान आदि करने के लिए नहीं । अर्हत् और अर्हत् चैत्यों को छोड़कर शाक्य आदि किसी और धर्मगुरु को नमस्कार नहीं करता। सल्लेखनापूर्वक कालधर्म को प्राप्त कर वह ब्रह्मलोक में उत्पन्न हुआ । देवलोक से च्युत होकर अम्मड परिव्राजक महाविदेह में उत्पन्न हुआ । उसके जन्म दिवस की खुशी में पहले दिन ठिइवडिय (स्थितिपतिता) उत्सव, दूसरे दिन चन्द्रसूर्यदर्शन और छठे दिन जागरिक रात्रिजागरण उत्सव मनाया गया। उसके बाद ग्यारहवें दिन सूतक बीत जाने पर बारहवें दिन नामसंस्करण किया गया और बालक दृढ़प्रतिज्ञ नाम से कहा जाने लगा। आठ वर्ष बीत जाने पर उसे शुभ तिथि और नक्षत्र में पढ़ने के लिए कलाचार्य के पास भेजा गया। वहाँ उसे 72 कलाओं की शिक्षा दी गई। 63. ओधनिर्युक्ति (ओहणिज्जुत्ती ) ओघ का अर्थ है सामान्य । विस्तार में गये बिना अर्धमागधी प्राकृत ग्रन्थ ओघनिर्युक्ति में सामान्य समाचारी का कथन किया गया है। इसके कर्त्ता भद्रबाहु हैं। इसे आवश्यक नियुक्ति का अंश माना जाता है। इसमें 811 गाथाएँ हैं, जिनमें साधुओं के आचार-विचार का प्रतिपादन किया गया है। साध्वाचार का ग्रन्थ होने के कारण कहीं-कहीं ओघनियुक्ति की गणना छेदसूत्रों में भी की जाती है। जैन श्रमण संघ के इतिहास का संकलन की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । 64. ऋषिदत्ताचरित इसमें ऋषि अवस्था में हरिषेण प्रीतिमती से उत्पन्न पुत्र ऋषिदत्ता और राजकुमार कनकरथ का कौतुकतापूर्ण चरित्र वर्णित है। कनकस्थ एक अन्य राजकुमार रुकमणी से विवाह करने जाता है पर मार्ग में एक वन में ऋषिदत्ता से विवाहकर लौट आता है। रुक्मणी ऋषिदत्ता को एक योगिनी के द्वारा राक्षसी के रूप में कलंकित करती है। उसे फाँसी की भी सजा होती है। पर ऋषिदत्ता अपने शील के प्रभाव से सब विपत्तियों को पार कर जाती है और अपने प्रिय से समागम करती है। इस आकर्षक कथानक को लेकर संस्कृत, प्राकृत में कई कथाकाव्य उपलब्ध होते हैं। इस कथा पर सबसे प्राचीन रचना प्राकृत में है जो परिमाण में प्राकृत रत्नाकर 045
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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