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कथनानुसार जिनवचनरूपी कानन से सुंदर पुष्पों को चुनकर सुवर्ण (सुन्दर शब्द सुन्दर रंग) और असदृश गुणों गुण डोरा) से युक्त इस श्रेष्ठ पुष्पमाला (उपनाम कुसुममाला)की रचना की गई है। इस कृति में जैन तत्वोपदेश, कर्मो के क्षय का उपाय प्रतिपादित किया गया है। इस कृति में तत्वोपदेश संबंधी कितनी ही महत्वपूर्ण धार्मिक और लौकिक कथायें विशद शैली में ग्रथित हैं। यह ऋषभदेव केशरीमल संस्था द्वारा सन् 1936 में इन्दौर से प्रकाशित है। 55. उपदेशमाला (उवएसमाला) _ विविध पुष्पों से गूंथी हुई माला की भॉति धर्मदासगणि ने पूर्व दृष्टान्त पूर्वक जिनवचन के उपदेशों को इस उपदेशमाला में गुंफित किया है। इस कथा को वैराग्य प्रधान कहा गया है जो संयम और तप में प्रयन न करने वाले व्यक्तियों को सुखकर नहीं होती। उपदेशमाला में कुल मिलाकर 542 प्राकृत गाथायें हैं जिनमें 70 कथानक गुंफित हैं। ग्रंथकार ने अपनी इस कृति को शांति देनेवाली, कल्याणकारी, मंगलकारी आदि विशेषणों द्वारा महत्त्वपूर्ण बताया है। ग्रन्थकार ईसवीं सन् की चौथी पाँचवी शताब्दी के विद्वान् जान पड़ते हैं। विद्वानों का मानना है कि इन ग्रंथ की गाथाओं में पाये जाने वाले आख्यान जैन साहित्य के प्राचीन स्तर तक जाते हैं, जिनकी तुलना नियुक्ति प्रकीर्णकों के आख्यानों से की जा सकती है। इस महत्वपूर्ण ग्रंथ पर अनेक विद्वानों ने टीकाओं की रचना की हैं।
इसमें चार विश्राम हैं। पहले विश्राम में रणसिंह, चंदनबाला, प्रसन्नचंद्र, भरत और ब्रम्हदत्त आदि की कथायें हैं। दूसरे विश्राम में मृगावती, जम्बूस्वामी, भवदेव, कुबेरदत्त, मकरदाढ़ा, वैश्या, भौताचार्य, चिलातिपुत्र, हरिकेश, वज्रस्वामी, वसुदेव आदि की कथायें हैं। जम्बूस्वामी की कथा में योगराज और एक पुरुष का संवाद है। तीसरे विश्राम में शालिभद्र, मेतार्यमुनि, प्रदेशी राजा, कालकाचार्य, वारत्रक मुनि, सागरचन्द्र, गोशाल, श्रेणिक, चाणक्य, आर्य महागिरि, सत्यकि, अन्निकापुत्र, चार प्रत्येक बुद्ध आदि की कथायें हैं। चतुर्थ विश्राम में शेलकाचार्य, पुडरीक, कंडरीक, दर्दुर, सुलस, जमालि आदि की कथायें हैं। 56. उपदेशरत्नाकर(उवएसरयणायर) इसके कर्ता सोमसुन्दरसूरि के शिष्य सहस्त्रावधानी मुनिसुन्दरसूरि हैं, जो बाल
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