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________________ की महिमा प्रकट करने के लिए एक धर्मकथा के रूप में इसको प्रस्तुत किया गया है। जैन कथाओं में यह हरिभद्रसूरिकृत सम्यक्त्वंसप्ततिका पर संघतिलकसूरिविरचित तत्त्वकौमुदी नामक विवरण (वि.सं.1422) में उपलब्ध है। प्राकत आरामसोहाकहा प्राकत भारती अकादमी जयपुर से 2007 में प्रकाशित हँ । डॉ कल्पना जैन ने इसका सम्पादन-अनुवाद किया है। 43. आवश्यकचूर्णि यह चूर्णि मुख्यतया नियुक्त्यनुसारी है। यत्र-तत्र विशेषावश्यकभाष्य की गाथाओं का भी व्याख्यान किया गया है। भाषा में प्रवाह एवं शैली में ओज है। विषय-विस्तार भी अन्य चूर्णियों की अपेक्षा अधिक है। कथानकों की प्रचुरता भी इसकी एक विशेषता है। इसमें ऐतिहासिक आख्यानों के विशेष दर्शन होते हैं। ओघनिर्यक्तिचूर्णि, गोविंदनियुक्ति, वसुदेवहिण्डि आदि अनेक ग्रन्थों का इसमें उल्लेख है। संस्कृत के अनेक लोक इसमें उद्धृत हैं। आवश्यक के सामायिक नामक प्रथम अध्ययन की व्याख्या करते हुए चूर्णिकार ने अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर के भवों की चर्चा की है तथा आदि तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव के धनसार्थवाह आदि भवों का वर्णन किया है। ऋषभदेव के जन्म, विवाह, सन्तान आदि का वर्णन करते हुए तत्कालीन शिल्प, कर्म, लेख आदि पर भी प्रकाश डाला है। इसी प्रसंग पर आचार्य ने ऋषभदेव के पुत्र भरत की दिग्विजय-यात्रा का अति रोचक एवं विद्वत्तापूर्ण वर्णन किया है। भरत का राज्याभिषेक, भरत और बाहुबलि का युद्ध, बाहुबली को केवलज्ञान की प्राप्ति आदि घटनाओं के वर्णन में भी चूर्णिकार ने अपना कौशल दिखाया है। प्रतिक्रमण नामक चतुर्थ अध्ययन की चूर्णि में अभयकुमार, श्रेणिक, चेल्लणा, सुलसा, कोणिक, चेटक, उदायी, महा पद्मनंद, शकटाल, वररुचि, स्थूलभद्र आदि ऐतिहासिक व्यक्तियों से सम्बन्धित अनेक कथानकों का इसमें संग्रह है। आगे के अध्ययनों में भी इसी प्रकार विविध विषयों का सदृष्टान्त व्याख्यान किया गया है। प्राकृत रत्नाकर 029
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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