SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हैं उन सभी पर चिन्तन किया गया है। ज्ञानावाद, प्रमाणवाद, आचारनीति, स्याद्वाद, नयवाद, कर्मसिद्धान्त पर विशद सामग्री का संकलन आकलन किया गया है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जैन दार्शनिक सिद्धान्तों की तुलना अन्य दार्शनिक विचारधाराओं के साथ की गई है। इसमें जैन आगम साहित्य की मान्यताओं का तार्किक दृष्टि से विश्रेषण किया गया है। आगम के गहन रहस्यों को समझने के लिए यह भाष्य अत्यधिक उपयोगी है। परवर्ती आचार्यों ने विशेषावश्यकभाष्य की विचार सामग्री और शैली का अपने ग्रन्थों में उपयोग किया है। विशेषावश्यकभाष्य का भाष्य साहित्य में अनूठा स्थान है। आचार्य की प्रबल तार्किक शक्ति, अभिव्यक्ति, कुशलता, प्रतिपादन की पटुता, विवेचन की विशिष्टता सहज रूप से देखी जा सकती है। इसमें जैन आगमों के प्रायः समस्त महत्त्वपूर्ण विषयों की चर्चा है। इस भाष्य की एक बहुत बड़ी विशेषता यह है कि इसमें जैन मान्यताओं का निरूपण केवल जैन दृष्टि से न किया जाकर इतर भारतीय दार्शनिक मान्यताओं के साथ तुलना, खण्डन, समर्थन आदि करते हुए किया गया है। यही कारण है कि प्रस्तुत भाष्य में दार्शनिक दृष्टिकोण का विशेष प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। जैनागमों का रहस्य के लिए विशेषावश्यकभाष्य निःसंदेह एक अत्यन्त उपयोगी ग्रन्थ है। इसकी उपयोगिता एवं महत्ता का सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि जिनभद्र के उत्तरवर्ती आगमिक व्याख्याकारों एवं ग्रन्थकारों ने एतनिरूपित सामग्री के साथ ही इसकी तर्कपद्धति का भी बहुत उदारतापूर्वक उपयोग किया है। यह ग्रन्थ, आवश्यकसूत्र की व्याख्या के रूप में हैं। इसमें आवश्यक के प्रथम अध्ययन सामायिक से सम्बन्धित नियुक्ति-गाथाओं का व्याख्यान है। .. चारित्ररूप सामायिक की प्राप्ति का विचार करते हुए भाष्यकार ने कर्म की प्रकृति, स्थिति सम्यक्त्वप्राप्ति आदि का विस्तारपूर्वक विवेचन किया है। कषाय को सामायिक का बाधक बताते हुए कषाय की उत्कृष्टता एवं मंदता से किस प्रकार चारित्र का घात होता है, इस पर विशेष प्रकाश डाला है। चारित्र प्राप्ति के कारणों पर प्रकाश डालते हुए आचार्य ने सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात चारित्र का विस्तार से व्याख्यान किया है। सामायिक प्राकृत रत्नाकर 0 325
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy