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________________ 31. आगम वाचनाएँ ___ आगमों को सुरक्षित रखने के लिए समय पर श्रमणों द्वारा विभिन्न सम्मेलन बुलाये गये तथा उन्हें लिखित रूप प्रदान किया गया। आज जो आगम ग्रंथ हमें उपलब्ध हैं, वे इन्हीं वाचनाओं का परिणाम हैं। प्रथम वाचना - वीर निर्वाण के 160 वर्षों बाद पाटलिपुत्र में द्वादशवर्षीय भीषण दुष्काल पड़ा।अकाल की समाप्ति के पश्चात् श्रमणसंघ आचार्य स्थूलिभद्र के नेतृत्व में पाटलिपुत्र में इकट्ठा हुआ। वहाँ पर स्मृति के आधार पर एकादश अंगों को व्यवस्थित किया गया। बारहवां अंग दृष्टिवाद किसी को भी स्मरण नहीं था, अतः उसका संग्रह नहीं किया जा सका। बाद में भद्रबाहु द्वारा स्थूलिभद्र को दस पूर्वो की अर्थ सहित तथा शेष चार पूर्वो की शब्दरुप वाचना दी गई। द्वितीय वाचना - आगम संकलन का दूसरा प्रयास ईसा पूर्व प्रथम-द्वितीय शताब्दी अर्थात् वीर निर्वाण के 300-330 वर्ष के मध्य सम्राट खारवेल के समय में हुआ।सम्राट खारवेल जैन धर्म के परम उपासक थे। उनके हाथीगुम्फा अभिलेख से स्पष्ट है कि उन्होंने उड़ीसा के कुमारी पर्वत पर जैन मुनियों का एक संघ बुलाया और मौर्यकाल में जो अंग विस्मृत हो गये थे, उनका पुनः उद्धार करवाया। __तृतीय वाचना - आगमों को संकलित करने हेतु तीसरी वाचना वीर-निर्वाण के 827-840 वर्षोपरान्त अर्थात् ईसा की तीसरी शताब्दी में आचार्य स्कन्दिल के नेतृत्व में मथुरा में हुई। यह सम्मेलन मथुरा में होने के कारण माथुरीवाचना के नाम से प्रसिद्ध है। प्रधान आचार्य स्कन्दिल के नेतृत्व में आगम-वेत्ता मुनि इकट्ठे हुए, जिन्हें जैसा स्मरण था, उस आधार पर श्रुत का संकलन किया गया था, उस समय आचार्य स्कन्दिल ही एकमात्र अनुयोगधर थे। उन्होंने उपस्थित श्रमणों को अनुयोग की वाचना दी। इस दृष्टि से सम्पूर्ण अनुयोग स्कन्दिल सम्बन्धी माना गया, और यह वाचना स्कन्दिल वाचना के नाम से जानी गई। - चतुर्थ वाचना- माथुरीवाचना के समय के आस-पास ईसा की तीसरी शताब्दी में वल्लभी में नागार्जुन की अध्यक्षता में दक्षिण-पश्चिम में विचरण करनेवाले श्रमणों की एक वाचना हुई, जिसका उद्देश्य विस्मृत श्रुत को व्यवस्थित करना था। उपस्थित मुनियों की स्मृति के आधार पर जितना उपलब्ध हो सका, प्राकृत रत्नाकर 0 23
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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