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________________ कम खर्च करना एवं कम संचय करना अच्छा है। उसने इन अभिलेखों के माध्यम से प्रजा में अहिंसा की भावना को जगाया। जीवन में अहिंसा को उतारने के लिए आहार पानी की शुद्धि का निर्देश दिया। प्रथम तथा चतुर्थ शिलालेख में जीव हिंसा का निषेध किया गया है। इसी प्रकार प्राणियों के प्राणों का आदर, विद्यार्थियों द्वारा आचार्य की सेवा एवं जाति भाईयों के साथ उचित व्यवहार का संदेश भी इन अभिलेखों में उत्कीर्ण है। - अशोक के अभिलेखों से यह भी ज्ञात होता है कि वह प्रजा को अपनी संतान मानता था। प्रजाहित को वह सर्वाधिक महत्त्व देता था। कलिंग अभिलेख में कहा गया है कि मेरी प्रजा मेरे बच्चों के समान है और मैं चाहता हूँ कि सबको इस लोक तथा परलोक में सुख तथा शान्ति मिले। छठे शिलालेख में अशोक ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा है - सर्व लोक हित मेरा कर्त्तव्य है, ऐसा मेरा मत है। यथा कतव्यमते हि मे सर्वलोकहितं। नास्ति हि कंमतरं सर्वलोकहितत्पा।.... (छठा शिलालेख) उसने यात्रियों के लिए छायादार पेड़ लगवाये, कुँए खुदवाए, सरायें बनवाई, रोगी मनुष्य एवं पशुओं के लिए चिकित्सा का पूरा प्रबंध किया। जहाँ औषधियाँ नहीं थीं, वहाँ लाई गई एवं रोपी गईं । यथा - ओसुडानि च यानि मनुसोषगानि च पसोपगानि च यत यत नास्ति, सर्वत्रा हारापितानि च रोपापितानि च।... (दूसरा शिलालेख) इन सब कार्यों के पीछे उसका यही अभिप्राय था कि लोग धर्म के प्रति आकर्षित हों और धर्म का आचरण करें। अशोक के अभिलेखों का धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्व है। धर्म को उसने सर्वोत्कृष्ट मंगल कहा है। धर्मदान, धर्मउदारता एवं धर्ममित्रता को सर्वश्रेष्ठ बताया है। दूसरे शब्दों में धर्म के संदेश के द्वारा भी उसने मानवीय मूल्यों को ही उकेरा है। द्वितीय स्तम्भ अभिलेख में धर्म का स्वरूप बताते हुए कहा है कि पाप से दूर रहना, बहुत अच्छे कार्य करना तथा दया, दान, सत्य और शौच का पालन प्राकृत रत्नाकर 0 15
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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