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________________ -साला जिसमें पूर्वपद अपनी विभक्ति का लोप कर उत्तरपद के साथ मिला हो और जिसमें उत्तरपद की ही प्रधानता हो वह तत्पुरुष समास कहलाता है। पूर्वपद की जो विभक्ति छिपी हुई होती है उसी नाम से यह तत्पुरुष समास जाना जाता है। जैसे- द्वितीया तत्पुरुष, तृतीया तत्पुरुष आदि। इस समास में प्रथम पद विशेषण और द्वितीय पद विशेष रहता है। उसी की प्रधानता होती है। जैसे(1)द्वितीया त. -इंदियातीदो झाणो = इन्द्रियातीत ध्यान -सुहंपत्तो सावगो = सुख को प्राप्त श्रावक (2) तृतीया त. -दयाजुत्तो मुणिवरो = दया से युक्त मुनिवर (3) चतुर्थी त. -थंभकटुंचिणोदि = खम्भे के लिए काष्ठ चुनता है (4) पंचमी त. -चरित्तभट्टो ण सिज्झदि = चरित्र से भ्रष्ट सिद्ध नहीं होता। -सीलदरिद्रा ण समणा = शील से रहित श्रमण नहीं होते। (5)षष्ठी त. -धम्मालयं अप्पा = आत्मा धर्म का निवास है। ___ -कम्मपुंजं डहह = कर्म समूह को जलाओ। (6)सप्तमी त. -लोगुत्तमो धमो = लोक में उत्तम धर्म। -जिणोत्तमो महावीरो = जिनों में प्रधान महावीर तत्पुरुष समास का ही एक विकसित रूप कर्मधारय समास है। इसमें पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य होता है। इसके कई भेद हैं। शौरसेनी प्राकृत में कर्मधारय समास के निम्न उदाहरण भी दृष्टव्य हैं - अभयदाणं गणधरो इंदियचोरा चरित्तभंडं भवरुक्खं बालतवं पूर्वपद में जब संख्यावाची शब्दों का प्रयोग हो तब उसे द्विगु समास कहते हैं। यह समास समुदाय का बोधक होता है। यथा - णवततवं चउक्कसायं तिलायं चउदिसा छदव्वाणि अट्टविहं अट्ठगुणा सव्वदव्वेसु जब समास में आये हुए पूर्व एवं उत्तरपद के सभी शब्द किसी अन्य शब्द के विशेषण हो तो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं । यथा - गुणगंभीरा देहविहूणा विरत्तचित्तो अप्पवसो विरागसम्पण्णो जिदभवाणं प्राकृत रत्नाकर 10 203
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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