SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथाएँ हैं। इसकी ताड़पत्रीय प्रति पाटन के ग्रंथभण्डार में हैं। उसके अंत में लीलावती नामक टीका भी प्राकृत में है। इस ग्रन्थ में निमित्त के सब अंगों का निरूपण नहीं है, केवल जातकविषयक प्रश्नविद्या का वर्णन किया गया है प्रश्नकर्ता के प्रश्न के अक्षरों से ही फलादेश बता दिया जाता है। इसमें समस्त पदार्थो को जीव, धातु और मूल- इन तीन भेदों में विभाजित किया गया है तथा प्रश्नों द्वारा निर्णय करने के लिये अवर्ग, कवर्ग आदि नामों से पाँच वर्गों में नौ-नौ अक्षरों के समूहों में बाँटा गया है। इससे यह विद्या वर्गकेवली के नाम से कही जाती है। चूडामणिशास्त्र में भी यही पद्धति है। इस ग्रंथ पर तीन अन्य टीकाओं के होने का उल्लेख मिलता है : 1. चूडामणि 2. दर्शनज्योति, जो लींबडी-भंडार में है और 3. एक टीका जैसलमेर भंडार में विद्यमान है। यह ग्रन्थ अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है। 242. प्रश्रव्याकरण सूत्र (पण्हावागरणाइं) __ अर्धमागधी आगम के अंग ग्रन्थों में प्रश्नव्याकरणसूत्र का दसवां स्थान है। समवायांग, नंदी, एवं अनुयोगद्वारसूत्र में प्रश्नव्याकरण के लिए ‘पण्हावागरणाई' शब्द मिलता है। इसका शाब्दिक अर्थ है - 'प्रश्नों का व्याकरण' अर्थात् निर्वचन, उत्तर एवं निर्णय। इन ग्रन्थों में प्रश्नव्याकरणसूत्र में दिव्य-विद्याओं, लब्धियों, अतिशयों आदि से सम्बन्धित जिस विषय सामग्री से युक्त प्रश्नों का उल्लेख किया गया है, वर्तमान समय में वह सामग्री इस ग्रन्थ में तनिक भी नहीं प्राप्त है। संभवतः वर्तमान समय में कोई इस सामग्री का दुरुपयोग न करे, अतः इन विषयों को निकालकर इस ग्रन्थ में जैनदर्शन के तत्त्वों आस्रव एवं संवर के वर्णन का समावेश कर दिया गया है। यह आगम दो खण्डों में विभक्त है, जिनमें क्रमशः मन के रोगों का उल्लेख एवं उनकी चिकित्सा का विवेचन किया गया है। प्रथम खण्ड में उन रोगों के नाम बताये गये हैं - हिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्मचर्य, परिग्रह। द्वितीय खण्ड में इन रोगों की चिकित्सा बताई गई है - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। आस्रव और संवर का निरूपण एवं विश्लेषण इस आगम ग्रन्थ में विस्तार से किया गया है। 243. प्राकृतकल्पतरु प्राकृतकल्पतरु के कर्ता रामशर्मा तर्कवागीश भट्टाचार्य हैं जो बंगाल के रहने प्राकृत रत्नाकर 0189
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy