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बालपण्डितमरण की व्याख्या है। देशयति की व्याख्या करते हुए पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत चार शिक्षाव्रत, संलेखना, बालपंडित का वैमानिकों में उपपात और उनकी सात भव से सिद्धि बताई है। (3)महाप्रत्याख्यान
महाप्रत्याख्यान (महापच्चक्खाण) प्रकीर्णक में त्याग का विस्तृत वर्णन है। इसमें 142 गाथाएँ हैं । ग्रन्थ के प्रारम्भ में तीर्थंकर, जिन, सिद्ध और संयतों को नमस्कार किया है और पाप व दुश्चरित्र की निन्दा करते हुए उनके प्रत्याख्यान पर बल दिया है। ममत्व-त्याग को महत्त्व दिया है। निश्चयदृष्टि से आत्मा ही ज्ञान, दर्शन व चारित्र रूप है। साधक को मूलगुण और उत्तरगुणों का प्रतिक्रमण करना चाहिए, पापों की आलोचना, निन्दा और गर्दा करनी चाहिए। जो निश्शल्य होता है उसी की शुद्धि होती है। (4) भक्तपरिज्ञा
प्रस्तुत प्रकीर्णक में भक्तपरिज्ञा नामक मरण का विवेचन मुख्य होने के कारण इसका नाम भक्तपरिज्ञा है। इसमें 172 गाथाएँ हैं। वास्तविक सुख की उपलब्धि जिनाज्ञा की आराधना से होती है। पण्डितमरण की आरधना पूर्णतया सफल होती है। पण्डितमरण (अभ्युद्यत मरण) के भक्तपरिज्ञा, इंगिनी और पादपोपगमन ये तीन भेद किये हैं। भक्तपरिज्ञा का फल है कि साधक जघन्य सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होता है। उत्कृष्ट गृहस्थ साधक अच्युत कल्प में पैदा होता है। श्रमण स्वर्गसिद्धि में या निर्वाण को प्राप्त होता है। प्रस्तुत प्रकीर्णक के कर्ता वीरभद्र हैं। गुणरत्न ने इस पर अवचूरि भी लिखी है। (5)तन्दुलवैचारिक __ प्रस्तुत ग्रन्थ में सौ वर्ष की आयु वाला व्यक्ति कितना तन्दुल यानि चावल खाता है इस संख्या वर विशेष रूप से चिन्तन करने के कारण उप लक्षण से इसका नाम तन्दुलवैचारिक (तन्दुलवेयालिय) रखा गया है। इस प्रकीर्णक में 139 गाथाएँ हैं। बीच-बीच में कुछ गद्यसूत्र भी हैं। इसमें मुख्य रूप से गर्भविषयक वर्णन है। सर्वप्रथम भगवान महावीर को नमस्कार किया गया है। उसके पश्चात् जिसकी आयु सौ वर्ष की है, परिगणना करने पर उसकी जिस प्रकार दस अवस्थाएँ होती हैं, और उन दस अवस्थाओं को संकलित कर निकाल
1800 प्राकृत रत्नाकर