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संख्या पाँच विषयों का विस्तृत विवेचन है। इसे सूक्ष्मार्थ विचार नाम से भी कहा गया है। ___ पाँचवे कर्मग्रन्थ में 100 गाथायें हैं। इनमें पहले कर्मग्रन्थ में वर्णित कर्मप्रकृतियों में से कौन सी प्रकृतियाँ ध्रुवबंधिनी, अध्रुवबंधिनी, ध्रुवोदया, अध्रुबोदया, ध्रुवसत्ता, अध्रुवसत्ता, सर्वधाती, देशधाती अधाती पुण्यप्रकृति पापप्रकृति, परावर्तमान प्रकृति और अपरावर्तमानप्रकृति होती है, इसका निरूपण है। 196. नाट्यशास्त्र
आचार्य भरत द्वारा रचित नाट्यशास्त्र सर्वाधिक प्राचीन संस्कृत व्याकरण है। इसमें प्राकृत भाषा के व्याकरण सम्बंधी कुछ नियमों का भी उल्लेख हुआ है। नाट्यशास्त्र के 17वें अध्याय में 6 से 23 लोकों में प्राकृत व्याकरण के कुछ सिद्धान्त विवेचित हैं। इसके अतिरिक्त 32वें अध्याय में प्राकृत के बहुत से उदाहरण दिये हैं। भरत के प्राकृत व्याकरण सम्बंधी ये अनुशासन अत्यंत ही संक्षिप्त एवं अस्पष्ट हैं, किन्तु यह व्याकरण-ग्रन्थ इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि भरत के समय में ही प्राकृत व्याकरण की आवश्यकता अनुभव की गई थी। दूसरी बात यह भी हो सकती है कि उस समय प्राकृत का कोई प्रसिद्ध व्याकरण-ग्रन्थ उपलब्ध रहा होगा। अतः आचार्य भरत ने प्राकृत व्याकरण के केवल कुछ सामान्य नियमों का मात्र उल्लेख करना ही पर्याप्त समझा होगा। 197. निमित्तशास्त्र
इस निमित्तशास्त्र नामक ग्रन्थ के कर्ता हैं ऋषिपुत्र । ये गर्ग नामक आचार्य के पुत्र थे। गर्ग स्वयं ज्योतिष के प्रकांड पंडित थे। पिता ने पुत्र को ज्योतिष का ज्ञान विरासत में दिया। इसके सिवाय ग्रंथकर्ता के संबंध में और कुछ पता नहीं लगता। ये कब हुए, यह भी ज्ञात नहीं है। इस ग्रंथ में 187 गाथाएँ हैं जिनमें निमित्त के भेद, आकाश-प्रकरण, चंद्र-प्रकरण, उत्पात-प्रकरण, वर्षा उत्पात, देव-उत्पातयोग, राज-उत्पातयोग, इन्द्रधनुष द्वारा शुभ-अशुभ का ज्ञान, गर्धवनगर का फल, विद्युल्लतायोग और मेघयोग का वर्णन है। 198. नित्तिडोलची एवं अन्य पाश्चात्य विद्वान् बीसवीं शताब्दी के चतुर्थ एवं पंचम दशक में पाश्चात्य विद्वानों ने प्राकृत
प्राकृत रत्नाकर 0151