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साथ-साथ उनके पूर्वभवों के विभिन्न प्रसंगों को भी मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किया गया है।जंबूकुमार के पूर्वभवों के वर्णन में भवदेव के भव का वर्णन अत्यंत रोचक है, जिसमें तपस्वी हो जाने पर भी भवदेव अपनी नव-विवाहिता पत्नी नागिला को स्मरण करता रहता है। इस काव्य का मूल उद्देश्य जीवन की चिरन्तन समस्याओं पर प्रकाश डालना तथा सांसारिक दुःख एवं संतापों से निवृत्ति प्राप्त करना है। जंबूकुमार द्वारा अपनी नव-विवाहिता आठ रानियों को संसार की नश्वरता का परिज्ञान कराने वाली दृष्टान्त कथाएँ सरस एवं शिक्षाप्रद हैं। उनके माध्यम से जैन दर्शन के सिद्धान्तों, आचार-व्यवहार आदि का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। धार्मिक वातावरण से व्याप्त यह ग्रन्थ काव्यात्मक सरसता को भी लिए हुए है। उपदेशों को भी वक्रोक्तियों द्वारा सरस बनाने का पूर्ण प्रयास किया गया है। यथा
उवयारसहस्सेहिं वि, वंकं को तरइ उज्जुयं काउं। सीसेण विवुब्भंतो,हरेणवंको विमयंको॥(गा. 15.34)
अर्थात् - हजारों उपकार करने के द्वारा भी टेढ़े व्यक्ति को सीधा करने में कौन समर्थ हो सकता है? जैसे शिव द्वारा सिर पर धारण किये जाने पर भी चन्द्रमा टेढ़ा ही रहता है।
महाराष्ट्री प्राकृत में रचित यह काव्य 16 उद्देशों में विभक्त है। प्रथम दो उद्देशों में 'समराइच्चकहा' के समान कथाओं के अर्थकथा, काम कथा, धर्मकथा एवं संकीर्णकथा - ये चार भेद बतलाकर धर्मकथा को ही रचना का प्रतिपाद्य विषय बतलाया है और तीसरे उद्देश से कथा प्रारम्भ की गई है। चौथे और पाँचवें में जम्बूस्वामी के पूर्वभवों का वर्णन दिया गया है। छठे में जम्बू का जन्म, शिक्षा, यौवन आदि का वर्णन है। सातवें में उनके वैराग्य की ओर प्रवृत्ति, माता-पिता द्वारा संसार-प्रवृत्ति के लिए विवाह । अगले उद्देशों में जम्बूस्वामी ने आठ पत्नियों तथा घर में घुसकर बैठे प्रभव नामक चोर तथा उसके साथियों को नाना आख्यानों, दृष्टान्तों, कथाओं आदि से वैराग्यवर्धक उपदेश सुनाये और अन्त में उन्होंने श्रमण-दीक्षा ग्रहण की और केवलज्ञान प्राप्त कर सिद्धि पाई।
1060 प्राकृत रत्नाकर