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________________ २९.४ खेचरी मुद्रा : खेचरी मुद्रा वैसे तो बहुत कठिन मुद्रा है पर यहां दी गयी इस मुद्रा से भी कुछ फायदे जरुर होते हैं । इस मुद्रा में जिह्वा को उलट कर कंठ के मूल पर जो घांटी है उसपर लगाकर, दृष्टि को नाक पर आज्ञाचक्र (दर्शनकेन्द्र) पर अपलक रखते हुए खेचरी मुद्रा बनती है । यह मुद्रा करते वखत उदानमुद्रा और आंतरिक रुप से हम् का मौन उच्चारण करने से ज्यादा लाभ होता है। लाभ: • भूख - प्यास पर नियंत्रण होता है । • मरणतुल्य कष्ट दूर होते है। • एकाग्रता सघती है। • निर्विकल्प दशा में लीन हो सकते है । २९.५ सर्वेन्द्रिय मुद्रा : पद्मासन, सुखासन या सिध्धासन में बैठकर, दोनो अंगूठे से दोनो कान के द्वार बंध कर के दोनो तर्जनी से दोनो आँखे बंधकर के, दोनों मध्यमा से दोनों नासिकाएँ बंध करके, दोनों अनामिका को होठ के उपर रखते हुए, दोनों कनिष्ठिका को होठ के नीचे सहज दबाव देते हुए, जालंदर, उड्डीयान और मूलबंध करते हुए सर्वेन्द्रिय मुद्रा बनती है। लाभ : • इन्द्रियो की वृति शांत होकर, चंचलता दूर होकर, ध्यान में लीन हो • सकते है। अंतरमुखी बनने से आंतरिक चेतना जागृत होती है। ज्योतिकेन्द्र पर बंध आंखो से सफेद रंग का अनुभव होता है । आवेश-आवेग शांत होकर, पूर्ण शांति का अनुभव होता है ।
SR No.002286
Book TitleMudra Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilam P Sanghvi
PublisherPradip Sanghvi
Publication Year
Total Pages66
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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