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________________ २३ हंसी मुद्रा : तर्जनी, मध्यमा और अनामिका को एक दूसरे से लगाकर, अंगूठा मध्यमा के मध्य भाग पर इस तरह रखे कि अंगूठे का स्पर्श अनामिका और तर्जनी से भी हो, फिर अंगूठे से धीरे से दबाव देते हुए, कनिष्ठिका सीधी रखते हुए हंसीमुद्रा बनती है । इस मुद्रा करने से हंस के मुखका आकार बनता है इसलिए इसे हंसी मुद्रा कहते है। लाभ : • हंस के प्रतीकरुप जागृति आती है । • हलकेपन का एहेसास होता है । • यज्ञ में हंसीमुद्रा करके आहुति, मध्यमा के अग्रभाव पर रखकर दी जाती है। इस से धन, धान्य, विजय और संपूर्ण पौष्टिक कर्म का फल मिलता है । नोट : इस मुद्रा से राजसिक याने भौतिक शक्तियाँ बढ़ती है इसलिए इस मुद्रा के साथ मंत्र-जाप आदि करने का निषेध है ।
SR No.002286
Book TitleMudra Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilam P Sanghvi
PublisherPradip Sanghvi
Publication Year
Total Pages66
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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