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२१ हार्टमुद्रा : दोनों हाथ की मध्यमा को मोडकर एक दूसरे से लगाकर, एक हाथ की तर्जनी के अग्रभाग को दूसरे हाथ की तर्जनी के अग्रभाग से मिलाकर, दोनों अनामिका के अग्रभाग को मिलाकर, दोनों कनिष्ठिका के अग्रभाग को मिलाकर, दोनों अंगूठे को एक दूसरे के आसपास रखकर, पहले धीरे-धीरे तर्जनी के अग्रभाग को अलग करके बाद में कनिष्ठिका को अलग करके फिर दोनो अंगूठे अलग करके और अनामिका के अग्रभाग को एक दूसरे से ही लगाकर और मोडी हुई मध्यमा को एक दुसरे से लगाए रखते हुए दबाव का अनुभव करते हुए हार्टमुद्रा बनती है ।
लाभ :
मध्यमा अंगुली आकाशतत्व का प्रतिनिधित्व करती है इसलिए हृदय के साथ उसका संपर्क और संबंध बनता है । इसलिए हृदय की कोई भी बीमारी में यह लाभदायक है। शांत चित्त से यह मुद्रा करने से अंगुलियों से हृदय तक के प्रकंपनो के अनुभव होते हैं। अन्जाईना पेईन, हायपर टेन्शन, रक्त दबाव, नाडी संस्थान की अस्त व्यस्तता
और बायपास करने के पहले और बाद की स्थिति में फायदा कारक है । हृदय के साथ तादात्म्य का अनुभव होता है, स्वयं में लीन रह सकते है और ध्यान में प्रगति होती है।