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________________ प्राणमुद्रा, अपनामुद्रा, पृथ्वीमुद्रा और ज्ञानमुद्रा साधक अपनी इच्छा के अनुसार ज्यादा से ज्यादा और लंबे समय तक कर सकते हैं । दूसरी मुद्राएं जैसे वायुमुद्रा, शून्यमुद्रा, लिंगमुद्रा, तकलीफ हो तब तक करनी चाहिए । ७. अपानवायु मुद्रा हृदय के लगते कोई भी रोग में तत्काल फायदा देती है । डाक्टरी सहायता मिलने से पहले रोगी यदि इसे करे तो उसे तात्कालिक लाभ प्राप्त होने साथ साथ राहत मिलती है। ८. अन्य कोई भी चिकित्सा के साथ मुद्रा का प्रयोग कर सकते हैं, क्योंकि इससे (मुद्रासे) चिकित्सा में सहायता मिलती है। ९. प्राण और अपान सम होने से योग साध्य होता है, नाडी शुद्धि भी होती है, और शरीर स्वस्थ बन कर रोगरहित बनता है । यह क्रिया प्राणमुद्रा और अपानमुद्रा के प्रयोग से होती है । ज्ञानमुद्रा मानसिक तनाव दूर कर के ज्ञानशक्ति बढाती है । पृथ्वीमुद्रा से शारीरिक शक्ति बढ़ती है । शंखमुद्रा से ७२००० नाड़ियों पर प्रभाव पड़ता है और स्नायुमंडल सशक्त होता है । सुरभिमुद्रा से वात-पित्त और कफ प्रकृतिप्रधान मनुष्य को फायदा होता है । अगर कोई बीमारी न हो और हमेशा स्वस्थ रहना चाहते हैं उसे ऊपर दी गई ९ नंबर की मुद्रायें नियमित समय पर करनी चाहिए। १०. कोई भी दो मुद्रायें जो साथ में करने का उल्लेख हो तब १५ मिनट दोनों हाथों से पहली मुद्रा करनी चाहिए और फिर तुरंत दोनों हाथों से जो दूसरी मुद्रा बतायी हो वह १५ मिनट करनी चाहिए | ११: मुद्राओं से अलग अलग तत्त्व में परिवर्तन, विघटन, अभिव्यक्ति और प्रत्यावर्तन होकर तत्त्व का संतुलन होता है |
SR No.002286
Book TitleMudra Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilam P Sanghvi
PublisherPradip Sanghvi
Publication Year
Total Pages66
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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