SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् 77 खजूर, दाख, हरड़ ये वस्तुएं भी सो योजन ऊपर जाने से अचित्त हो जाती हैं, ऐसा समझना चाहिए। पर इसमें कितनेक आचीर्ण (वापरने योग्य) और कितनेक अनाचीर्ण (न वापरने योग्य) हैं। पीपल, हरड़ इत्यादि आचीर्ण हैं तथा खजूर, नमक, द्राक्ष आदि अनाचीर्ण हैं। यह अब सब वस्तुओं के परिणाम होने का साधारण (जो वस्तु साधारण को लागू पड़े) कारण कहते हैं — गाड़ी में अथवा बैल - आदि की पीठ पर बारम्बार चढ़ाने उतरने से, गाड़ी में अथवा बैलपर लादे हुए लवणादि वस्तु के बोझ में मनुष्य के बैठने से, बैल तथा मनुष्य के शरीर की उष्णता लगने से, जिस वस्तु का जो आहार है वह न मिलने से और उपक्रम से लवणादि वस्तु का परिणाम होता है अर्थात् वे अचित्त हो जाती हैं। उपक्रम याने शस्त्र । वह (शस्त्र) १ स्वकाय, २ परकाय और ३ उभयकाय ऐसे तीन भेद से तीन प्रकार का है । लवणजल (खारा पानी) मीठे जल का शस्त्र है, स्वकाय शस्त्र है। अथवा कृष्णभूमि (काली जमीन) पांडुभूमि (सफेद भूमि) का स्वकाय शस्त्र है। जल का अग्नि तथा अग्नि का जल जो शस्त्र है वह परकाय शस्त्र है। मिट्टी से मिश्र हुआ जल शुद्धजल का शस्त्र है, इसे उभयकाय शस्त्र कहते हैं। सचित्त वस्तु के परिणाम (अचित्त) होने के इत्यादिक कारण हैं। उत्पल (कमल विशेष) और पद्म (कमल विशेष) जलयोनि होने से धूप में रखे जाय तो एक प्रहर भर भी सचित्त नहीं रहते अर्थात् प्रहर पूरा होने के पूर्व ही अचित्त हो जाते हैं। मोगरा, चमेली, तथा जुही के फूल उष्णयोनि होने से उष्णप्रदेश में रखे जाय तो बहुत काल तक सचित्त रहते हैं। मगदन्तिका के फूल पानी में रखें तो एक प्रहरभर भी सचित्त नहीं रहते । उत्पलकमल तथा पद्मकमल पानी में रखें तो बहुत समय तक सचित्त रहते हैं। पत्ते, फूल, बीज न पड़े हुए फल तथा वत्थुला (शाकविशेष) आदि हरितकाय अथवा सामान्यतः तृण तथा वनस्पतिका गट्ठा डालने से उगनेवाला अथवा मूल नाल (जड़) सूखने पर अचित्त हुए समझना चाहिए। इस प्रकार कल्पवृत्ति में कहा है। श्री भगवती सूत्र के छट्ठे शतक के सातवें उद्देशा में शालि (साल) आदि धान्य का सचित्त अचित्त विभाग इस प्रकार कहा है— सचित्त अचित्त विभाग : प्रश्न - हे भगवंत ! शालि (साल - चांवल की जाति), व्रीहि (सर्व जाति के सामान्य साल), गोधूम (गेहूं), जव (छोटे जव), जव जव ( एक जात के बड़े जव), ये धान्य कोठी में, बांस से बनाये हुए टोकने में, थोड़े से ऊंचे ऐसे मंचों में और अधिक ऊंचे ऐसे माले में ढक्कन के पास गोबर आदि से लिपे हुए अथवा चारों ओर गोबर से लिपे हुए, मुद्रित (मुंह परसे बंद किये हुए) ऐसे में रख दिये जाय तो उनकी योनि कितने समय तक रहती है ? उत्तर—हे गौतम! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से तीन वर्ष (योनि रहती है)। तदनंतर योनि सूख जाय तब वे (धान्य) अचित्त हो जाते हैं और बीज अबीज हो जाते हैं।
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy