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________________ 370 श्राद्धविधि प्रकरणम् गया। और वहां कहने लगा कि 'सामने जो बड़ वृक्ष दृष्टि आता है, वह समुद्र के किनारे आयी हुई पहाड़ी की तलेटी में है। इसके नीचे अपनी नौका पहुंचे तब तू बड़ की शाखा पर बैठ जाना; तीन पैरवाला भारंड पक्षी पंचशैलद्वीप से आकर इसी बड़ पर सो रहते हैं, उसके बीच के पैर में तू वस्त्र से अपने शरीर को मजबूत बांध रखना। प्रातःकाल में उक्त पक्षी के साथ तू भी पंचशैलद्वीप में जा पहुंचेगा। यह नौका तो अब भयंकर भ्रमर में फंस जायेगी।' तदनन्तर नाविक के कथनानुसारकर कुमारनंदी पंचशैलद्वीप में पहुंचा और हासा प्रहासा को देखकर प्रार्थना की। तब हासा प्रहासा ने उसको कहा कि, 'तू इस शरीर से हमारे साथ भोग नहीं कर सकता। इसलिए तू अग्नि प्रवेश आदि करके इस द्वीप का मालिक हो जा)' यह कहकर उन्होंने कुमारनंदी को हथेली पर बैठाकर चंपानगरी के उद्यान में छोड़ दिया। पश्चात् उसके मित्र नागिल श्रावक ने उसे बहुत मना किया, तो भी वह नियाणाकर अग्नि में पड़ा और मृत्यु को प्राप्त हो, पंचशैलद्वीप का अधिपति व्यंतर देवता हुआ। नागिल को उससे वैराग्य उत्पन्न हुआ और वह दीक्षा ले, कालकर बारहवें अच्युतदेवलोक में देवता हुआ। ____एक समय नंदीश्वरद्वीप में जानेवाले देवताओं की आज्ञा से हासा-प्रहासा ने कुमारनंदी के जीव व्यंतर को कहा कि-'तू पड़ह ग्रहणकर' वह अहंकार से हुंकार करने लगा, इतने में ही पड़ह आकर उसके गले में लटक गया। उसने बहुत प्रयत्न किया, किन्तु उसके गले में से पड़ह अलग नहीं हुआ। उस समय अवधिज्ञान से यह बात जानकर नागिल देवता वहां आया। जैसे सूर्य के तेज से उल्लू पक्षी भागता है, उसी प्रकार उक्त देवता के तेज से कुमारनंदी व्यन्तर भागने लगा। तब नागिल देवता ने अपना तेज समेटकर कहा कि, 'तू मुझे पहिचानता है?' उसने कहा कि, 'इन्द्रादि देवताओं को कौन नहीं पहिचानता है?' तब नागिल देवता ने पूर्वभव कहकर व्यन्तर को प्रतिबोधित किया। तब व्यन्तर ने पूछा 'अब मैं क्या करूं?' देवता ने उत्तर दिया "अब तू गृहस्थावस्था में कायोत्सर्ग किये हुए भाव यति श्रीमहावीरस्वामी की प्रतिमा बनवा, इससे तुझे आगामी भव में बोधिलाभ होगा।' देवता का यह वचन सुन उसने श्रीमहावीरस्वामी को देख नमस्कार किया और हिमवंतपर्वत से लाये हुए गौशीर्षचंदन से वैसी ही दूसरी प्रतिमा तैयार की। पश्चात् प्रतिष्ठा करवाकर सर्वांग में आभूषण पहनाकर, पूष्पादिक वस्तु से उसकी पूजा की और श्रेष्ठ चंदन की पेटी में रखी। एक समय उस प्रतिमा के प्रभाव से व्यन्तर ने समुद्र में एक नौका के छः महीने के उपद्रव दूर किये। और उस नौका के नाविक को कहा कि-'तु यह प्रतिमा की पेटी सिंधुसौवीरदेशान्तर्गत वीतभयपट्टण में ले जा और वहां के बाजार में ऐसी उद्घोषणा कर कि, 'देवाधिदेव की प्रतिमा लो।' उक्त नाविक ने वैसा ही किया। तब तापस भक्त उदायन राजा तथा दूसरे भी बहुत से अन्यदर्शनियों ने अपने-अपने देव का स्मरण करके उस पेटी पर कुल्हाड़े से प्रहार किये, जिससे कुल्हाडे टूट गये किन्तु पेटी नहीं खुली। सर्वलोग उद्विग्न हो गये। मध्याह्न का समय भी हो गया। इतने में रानी प्रभावती
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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