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________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् 357 स्त्रीवेद तथा नपुंसकवेद को नहीं बांधता और पूर्व में बांधा हो तो उसकी निर्जरा करता है। आलोचना के उक्त आठ गुण हैं। ___ अतिशय तीव्रपरिणाम से किया हुआ, बड़ा तथा निकाचित हुआ, बालहत्या, स्त्रीहत्या, यतिहत्या, देव-ज्ञान इत्यादिक के द्रव्य का भक्षण, राजा की स्त्री के साथ गमन इत्यादि महापाप की सम्यक् प्रकार से आलोचना करके गुरु का दिया हुआ प्रायश्चित्त यथाविधि करे तो वह जीव उसी भव में शुद्ध हो जाता है ऐसा न होता तो दृढ़प्रहारी आदि को उसी भव में मुक्ति किस प्रकार होती? अतएव प्रत्येक चातुर्मास में अंथवा प्रतिवर्ष अवश्य आलोचना लेनी ही चाहिए। इति श्रीरत्नशेखरसूरि विरचित श्राद्धविधिकौमुदी की हिन्दीभाषा का वर्षकृत्य नामक __ पंचमः प्रकाशः सम्पूर्णः हे आत्मन्! ये स्वजन (माने हुए) हितकारी है या अहितकारी! इस पर चिंतन कर! ये तुझे सद्गति में सहायक है या दुर्गति में! तूने कितनों को जलाया वैसे ये भी तुझेजलायेंगे। शरीरजलाया ही जायगा। तो फिरजलने एवं जलानेवालों पर प्रीति कैसी? नजले न जला सके ऐसा आत्मतत्त्व है उस पर प्रीति कर। आत्म तत्त्व के हितचिंतक सुदेव-सुगुरु पर प्रीति कर। यही मानवभव का सार है।
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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