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________________ 248 श्राद्धविधि प्रकरणम् १६ अपढ़ होते हुए उच्चस्वर से कविता बोले, १७ बिना अवसर बोलने की चतुरता बतावे, १८ बोलने के समय पर मौन धारण करे, १९ लाभ के अवसर पर कलह-क्लेश करे, २० भोजन के समय क्रोध करे, २१ विशेष लाभ की आशा से धन फैलावे, २२ साधारण बोलने में क्लिष्ट संस्कृत शब्दों का उपयोग करे, २३ पुत्र के हाथ में सर्वधन देकर आप दीन हो जावे, २४ स्त्रीपक्ष के लोगों के पास याचना करे, २५ स्त्री के साथ खेद होने से दूसरी स्त्री से विवाह करे, २६ पुत्र पर क्रोधित हो उसकी हानि करे, २७ कामी पुरुषों के साथ स्पर्धा करके धन उड़ाएँ, २८ याचकों की की हुई स्तुति से मन में अहंकार लावे, २९ अपनी बुद्धि के अहंकार से दूसरों के हितवचन न सुने, ३० 'हमारा श्रेष्ठ कुल है' इस अभिमान से किसीकी चाकरी न करे, ३१ दुर्लभ द्रव्य देकर कामभोग करे, ३२ पैसा देकर कुमार्ग में जावे, ३३ लोभीराजा से लाभ की आशा करे, ३४ दुष्ट अधिकारी से न्याय की आशा करे, ३५ कायस्थ से स्नेह की आशा रखे, ३६ मंत्री के क्रूर होते हुए भय न रखे, ३७ कृतघ्न से प्रत्युपकार की आशा रखे, ३८ अरसिक मनुष्य के संमुख अपने गुण प्रकट करे, ३९ शरीर निरोगी होते हुए भी भ्रम से औषधी ले, ४० रोगी होते हुए पथ्य सेन रहे, ४१ लोभवश स्वजनों को छोड़ दे, ४२ जिससे मित्र के मन में से राग उतर जाय ऐसे वचन बोले, ४३ लाभ के अवसर पर प्रमाद करे, ४४ ऋद्धिशाली होते हुए कलह-क्लेश करे, ४५ जोशी के वचन पर भरोसा रखकर राज्य की इच्छा करे, ४६ मुर्ख के साथ सलाह करने में आदर रखे, ४७ दुर्बलों को सताने में शूरवीरता प्रकट करे, ४८ जिसके दोष स्पष्ट दिखते हैं ऐसी स्त्री पर प्रीति रखे, ४९ गुण का अभ्यास करने में अत्यन्त ही अल्प रुचि रखे, ५० दूसरे का संचित किया हुआ द्रव्य उड़ायें, ५१ मान रखकर राजा के समान डौल बताये, ५२ लोक में राजादिक की प्रकट निंदा करे, ५३ दुःख पड़ने पर दीनता प्रकट करे, ५४ सुख आने पर भविष्य में होनेवाली दुर्गति को भूल जाय,५५ किंचित् रक्षा के हेतु अधिक व्यय करे,५६ परीक्षा के हेतु विष खाले,५७ किमिया करने में धन स्वाहा करे, ५८ क्षय रोगी होते हुए रसायन खाये, ५९ अपने आपके बड़प्पन का अहंकार रखे, ६० क्रोधवश आत्मघात करने को तैयार हो जाय, ६१ निरंतर अकारण इधर-उधर भटकता रहे,६२ बाण प्रहार होने पर भी युद्ध देखे,६३ बड़ों के साथ विरोध करके हानि सहे, ६४ धन थोड़ा होने पर भी विशेष आडंबर रखे, ६५ अपने आपको पंडित समझकर व्यर्थ बक-बक करे, ६६ अपने आपको शूरवीर समझकर किसीका भय न रखे, ६७ विशेष प्रशंसा (मिथ्या श्लाघा) कर किसी मनुष्य को त्रास उत्पन्न करे, ६८ हंसी में मर्मवचन बोले, ६९ दरिद्री के हाथ में अपना धन सोंपे, ७० लाभ का निश्चय न हो तो भी खर्च करे, ७१ अपना हिसाब रखने का प्रमाद करे, ७२ भाग्य पर भरोसा रखकर उद्यम न करे, ७३ दरिद्री होकर व्यर्थ बातें करने में समय खोवे, ७४ व्यसनासक्त होकर भोजन करना तक भूल जाय, ७५ आप निर्गुणी होकर अपने कुल की प्रशंसा करे,७६ स्वर कठोर होते हुए गीत गावे,७७ स्त्री के भय से याचक को दान न दे,७८ कृपणता करने से दुर्गति पावे,७९ जिसके दोष स्पष्ट दिखते हैं
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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