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________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् 9 मालूम होता है कि मेरी स्त्रियों से भी अधिक सुन्दर कोई दूसरी स्त्री अन्यत्र कहीं है।' तोता पुनः बोला - 'ठीक ही है, अधूरी बात कहने से मनुष्य को आनन्द नहीं होता । हे राजन् ! जब तक तू गांगलि ऋषि की पुत्री को नहीं देखेगा तभी तक तू अपने अन्तःपुर की स्त्रियों को मनोहर समझेगा । वह त्रिलोक में ऐसी सुन्दर व सर्व अवयवों से परिपूर्ण है कि विधाता ने मानो उसे बनाकर सृष्टि रचना का फल प्राप्त कर लिया है। जिसने उस कन्याको नहीं देखा उसका जीवन निष्फल है। और जिसने कभी देखा हो पर आलिंगन न किया उसका भी जीवन निष्फल है। क्या कोई उसे देखकर कभी अन्य स्त्री से प्रीति कर सकता है? भ्रमर मालती के पुष्प को त्यागकर क्या अन्य पुष्प पर आसक्त हो सकता है? नहीं, कदापि नहीं । जो सूर्य की पुत्री कमलमाला (कमल की पंक्ति) के सदृश उस कमलमाला कन्या को देखने की अथवा उससे विवाह करने की इच्छा हो तो शीघ्र मेरे साथ चल!' यह कहकर तोता तुरंत वृक्ष पर से उड़ा। यह देखकर मन में अत्यंत उत्सुक हुए राजा ने चिल्लाकर सेवकों से कहा कि 'रे खिदमतगारों ! मेरा पवन समान वेग से चलनेवाला सत्यान्वय नामक घोड़ा शीघ्र तैयार करके यहां लाओ।' ज्यों ही उन्होंने घोड़े को लाकर उपस्थित किया त्यों ही करोड़ों राजाओं का राजराजेश्वर चक्रवर्ती मृगध्वज घोड़े पर चढ़कर उस तोते के पीछे चला। जिस तरह दूर के लोगों ने तोते की वाणी नहीं सुनी वैसे ही किसी देवी कारण से पास का भी कोई मनुष्य कुछ सुन समझ न सका। इससे मंत्री आदि राजा की इस एकाएक कृति को देखकर घबरा गये और कुछ दूर तक राजा के पीछे-पीछे गये किंतु अन्त में निराश होकर वापस लौट आये। इधर आगे तोता व पीछे राजा दोनों पवन वेग से चलते हुए ५०० योजन पार कर गये । परंतु कोई दिव्य प्रभाव से इतनी दूर निकल जाने पर भी ये बिल्कुल न थके और जिस तरह कर्म से खिंचा हुआ मनुष्य भवान्तर में घूम है उसी प्रकार विघ्न से बचानेवाले उस तोते से खिंचा हुआ राजा मृगध्वज एक घने जंगल में पहुंचा। महान पुरुषों में भी पूर्वभव का संस्कार कैसा प्रबल होता है। नाम धाम कुछ भी ज्ञात न होने पर भी देखो राजा उस तोते के साथ हो गया। उस वन में मानों मेरुपर्वत का एक खंड हो, ऐसा कल्याणकारी व दिव्य कान्तिधारी श्री आदिनाथ का एक सुवर्णरत्नमय मंदिर था। उसके कलश पर बैठकर तोता मधुर शब्दों से बोला कि 'राजन्! जन्म से अभी तक किये हुए संपूर्ण पापों की शुद्धि के निमित्त श्री आदिनाथ भगवान् को वन्दना कर' राजा ने यह समझकर कि तोते को जाने की बहुत जल्दी है, शीघ्र घोड़े पर से ही भगवान् को वन्दना की । चतुर तोते ने राजा का अभिप्राय समझकर उसके हित के लिए स्वयं मंदिर में जाकर प्रभु को प्रणाम किया । जिस तरह श्रेष्ठपुरुषों के चित्त में ज्ञान के पीछे-पीछे विवेक प्रवेश करता है उसी प्रकार राजा भी घोड़े पर से उतरकर तोते के पीछे-पीछे मंदिर में गया। वहां श्री ऋषभदेव भगवान् की रत्न जड़ित और अनुपम
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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