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________________ 170 श्राद्धविधि प्रकरणम् हर्ष आदि उत्पन्न हो। ऐसी कौनसी वस्तु है कि जो जिनेश्वर भगवन् का वचन सुनने से न मिले? - अपना शरीर क्षणभंगुर है, बांधव बंधन समान है, लक्ष्मी विविध अनर्थ को उत्पन्न करनेवाली है, अतः जैन-सिद्धान्त सुनना जिससे संवेग आदि उत्पन्न होता है। तथा यह सिद्धान्त मनुष्य पर उपकार करने में किसी भी प्रकार की कमी नहीं रखता। प्रदेशी राजा का संक्षेप वर्णन इस प्रकार हैप्रदेशी राजा की कथा : श्वेताम्बीनगरी में प्रदेशी नामक राजा व चित्रसारथी नामक उसका मंत्री था। मंत्री ने चतुर्ज्ञानी श्रीकेशि गणधर से श्रावस्तिनगरी में श्रेष्ठ श्रावकधर्म अंगीकार किया था। एकबार उसके आग्रह से श्रीकशि गणधर श्वेताम्बीनगरी में आये। मंत्री घोड़े पर बैठ सैर करने के बहाने प्रदेशी राजा को उनके पास ले गया। तब राजा ने गर्व से मुनिराज को कहा–'हे मुनिराज! आप व्यर्थकष्ट न करो। कारण कि धर्म आदि जगत् में है ही नहीं। मेरी माता श्राविका थी और पिता नास्तिक था। मृत्यु के समय मैंने उनसे बार-बार कहा था कि, 'मृत्यु हो जाने के अनंतर तुमको जो सुख अथवा नरक में दुःख हो, वह मुझे अवश्य सूचित करना।' परन्तु उनमें से किसीने आकर मुझे अपने सुखदुःख का वृत्तान्त नहीं कहा। एक चोर के मैंने तिल के बराबर टुकड़े किये, तो भी मुझे उसमें कहीं भी जीव नजर नहीं आया। वैसे ही जीवित तथा मृत मनुष्य को तौलने से उनके भार में कुछ भी अन्तर ज्ञात न हुआ। और भी मैंने एक मनुष्य को छिद्र रहित एक कोठी में बंद कर दिया। वह अंदर ही मर गया। उसके शरीर में पड़े हुए असंख्य कीड़े मैंने देखे, परन्तु उस मनुष्य का जीव बाहर जाने तथा उन कीड़ों के जीवों को अंदर आने के लिए मैंने वाल के अग्रभाग के बराबर भी मार्ग नहीं देखा। इस प्रकार बहुत सी परीक्षाएं करके मैं नास्तिक हुआ हूं।' श्रीकेशि गणधर ने कहा—'तेरी माता स्वर्गसुख में निमग्न होने के कारण तुझे कहने को नहीं आयी, तथा तेरा पिता भी नरक की अतिघोर वेदना से आकुल होने के कारण यहां नहीं आ सके। अरणी की लकड़ी में अग्नि होते हुए, उसके चाहे कितने ही बारीक टुकड़े किये जायँ तो भी उसमें अग्नि दृष्टि में नहीं आती। वैसे ही शरीर के चाहे कैसे ही बारीक टुकड़े करो तो भी उसमें जीव कहां है यह नहीं दीखता। लोहार की धमनी वायु से भरी हुई अथवा खाली तोलें तो भी तौल में रत्तीभर भी अन्तर नहीं होगा? उसी तरह शरीर में जीव होते हुए अथवा उसके निकल जाने पर शरीर तोलोगे तो अन्तर ज्ञात नहीं होगा। कोठी के अंदर बंद किया हुआ मनुष्य यदि शंख बजाये जो शब्द बाहर सुनने में आता है, परन्तु यह नहीं जान पड़ता कि वह शब्द किस मार्ग से बाहर आया। उसी प्रकार कोठी के अंदर बंद किये हुए मनुष्य का जीव कैसे बाहर गया और उसमें उत्पन्न हुए कीड़ों का जीव कैसे अन्दर आया, यह भी नहीं ज्ञात हो सकता।' इस प्रकार श्रीकेशि गणधर ने युक्तिपूर्वक उसे समझाया, तब प्रदेशी राजा ने
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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