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________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् देखते ही स्वतः मिट्टी पानी डालना चाहिए' इसी प्रकार एक दिन सरदार-पुत्र स्नान करने के पश्चात् अपने बालों को सुगन्धित धूम दे रहा था, इस लड़के ने ज्यों ही धूआं उठता देखा त्यों ही अपने मालिक के सिर पर गोबर, मिट्टी आदि का टोकना डालकर पानी पटक दिया। अन्त में विवश होकर सरदार-पुत्र ने इसे नौकरी से निकाल दिया। सारांश यह कि ऐसे मूर्ख-पुरुषों को प्रतिबोध होना शक्य नहीं। (४) पूर्वव्युद्ग्राहित में गोशाले के नियतिवाद में दृढ़ किये हुए नियतिवादी इत्यादि का दृष्टान्त समझना चाहिए। ___ उपरोक्त चारों पुरुष धर्म के अयोग्य हैं। परन्तु आर्द्रकुमारादिक के जैसे जो पुरुष मध्यस्थ होवे अर्थात् जिसका किसी मत पर राग द्वेष नहीं, वही व्यक्ति धर्म पाने के योग्य है। इसी कारण मूल गाथा में भी 'भद्रप्रकृति' ही धर्म योग्य है यह कहा है। ____इसी तरह विशेष निपुणमति अर्थात् हेय (त्याग करने योग्य) और उपादेय (आदर करने योग्य) वस्तुओं में क्या तत्त्व है? यह जान लेने में जो निपुण हो वही धर्म के योग्य है। ____३ तथा व्यवहार की शुद्धि रखना आदि न्यायमार्ग ऊपर जिसकी पूर्ण अभिरुचि हो और अन्याय मार्ग पर बिलकुल रुचि न हो वह न्यायमार्ग रति।। ४ अपने वचनों का पालन करने में जो दृढ़प्रतिज्ञ हो वह दृढ़ निजवचनस्थिति ये दोनों पुरुष भी धर्म के योग्य हैं। १ भद्रकप्रकृति र विशेषनिपुणमति ३ न्यायमार्गरति व ४ दृढनिजवचनस्थित इन ऊपर कहे हुए चार विशेषणों में आगमोक्त श्रावक के इक्कीस गुणों का समावेश हुआ श्रावक के इक्कीस गुण : धम्मरयणस्स जुग्गो अक्खुद्दो रूववं पगइसोमो। लोगप्पिओ अरो भीरू असढो सदक्खिण्णो ॥१।। लज्जालुओ दयालू मज्झत्थो सोमदिट्ठि गुणरागी। सक्कह सुपक्खजुत्तो सुदीहदंसी विसेसन्नू ।।२।। वुड्डाणुगो विणीओ कयण्णुओ परहिअत्थकारी । तह चेव लद्धलक्खो इगवीसगुणेहिं संजुत्तो ।।३।। १ अक्षुद्र (उदारचित्त), २ रूपवान् (जिसके अंग प्रत्यंग तथा पांचों इन्द्रियां अच्छे व विकार रहित हो), ३ प्रकृतिसौम्य (जो स्वभाव से ही पापकर्मों से दूर रहता हो तथा जिसके नौकर, चाकर आदि आश्रित लोग प्रसन्नतापूर्वक सेवा कर सकते हो), ४ लोकप्रिय (दान, शील, विनय आदि गुणों से जो लोगों के मन में प्रीति उत्पन्न करनेवाला हो),५ अक्रूर (जो मन में संक्लेश नहीं रखता हो),६ भीरु (पाप तथा अपयश से डरनेवाला),७ अशठ (जो किसी को ठगे नहीं), ८ सदाक्षिण्य (कोई
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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