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प्रावश्यक था कि दोनों भागों में दिये गये महाभाष्यदीपिका के पाठ मुद्रितन्य में किस पृष्ठ पर कहां है, इसका निर्देश किया जाये । इसकी पूर्ति भी आठवें परिशिष्ट में की गई है ।'
दोनों भागों के पूर्व संस्करणों में ग्रन्थ में उद्धृत ग्रन्थ, ग्रन्थकार या विशिष्ट व्यक्तियों के नामों की सूची देनी आवश्यक थी। इसके विना शोध कार्य करनेवालों को महती प्रसुविधा होती थी । इस भाग में उक्त सूचियां देकर इस ग्रन्थ की महतो कमी को पूरा कर दिया है ।
इस प्रकार इस भाग के साथ हमारा ग्रन्थ पूर्ण होता है ।
तीनों भागों में उद्धृत ग्रन्थ, ग्रन्थकार वा व्यक्ति विशेषों के नामों की सूची बनाने का जटिल एवं समयसाध्य कार्य रामलाल कपूर ट्रस्ट के द्वारा संचालित 'पाणिनि विद्यालय के प्राचार्य श्री पं० विजयपाल जी व्याकरणाचार्य, विद्यावारिधि ने किया है । यदि वे इस कार्य को करना स्वीकार न करते, तो सम्भव है इस संस्करण में भी यह कमी रह जाती । इस महत्त्वपूर्ण कार्य को पूरा करके अपने जा सहयोग दिया है, इसके लिए मैं आपका आभारी हूं ।
इसी प्रकार प्रूफ संशोधन का जटिल कार्य रामलाल कपूर ट्रस्ट प्रेस के संशोधक श्री पं० महेन्द्र शास्त्री जो ने किया है । इसके लिए मैं प्राप का धन्यवाद करना अपना कर्त्तव्य समझता हूं ।
इसके साथ ही रायसाहब श्री चौधरी प्रतापसिंह जी (करनाल) ने भी इस भाग के प्रकाशन में जो अप्रत्यक्ष सहयोग दिया है । उसके लिए मैं आपका अत्यन्त प्रभारी हूं ।
रामलाल कपूर ट्रस्ट भाद्र पूर्णिमा बहालगढ़ (सोनीपत-हरयाणा) सं० २०३०
विदुषां वशंवदःयुधिष्ठिर मोमांसक
१. प्रस्तुत सं० २०४१ के संस्करण में 'महाभाष्यदीपिका' के जहां भी उद्धरण दिये हैं, वहां सर्वत्र अपने हस्तलेख की पृष्ठ संख्या के साथ मुद्रित संस्करण की पृष्ठ संख्या भी दे दी है, अतः प्रस्तुत संस्करण में इस परिशिष्ठ की प्रावश्यकता नहीं रही ।