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(वाराणसी) के भूतपूर्व छात्र श्री ओम्प्रकाश व्याकरणाचार्य एम० ए० १० ने श्रावण वि० सं० २०२३ में इसकी प्रतिलिपि करके हमें दी थी ।
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तीसरा परिशिष्ट
- नागोजि भट्ट पर्यालोचित भाष्यसम्मत अष्टाध्यायी पाठ
नागोजि भट्ट - पर्यालोचित भाष्यसम्मत अष्टाध्यायी पाठ का एक हस्तलेख वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय के सरस्वती-भवनस्थ संग्रहालय में विद्यमान है । मूलकोश सं० १८८५ वि० का लिखा हुआ है । इसकी हस्तलेख संख्या प्रा० ६१५० है । हस्तलेख में दो पत्रे ( = ४ पृष्ठ ) हैं । यह अत्यन्त जीर्णशीर्ण और अशुद्ध तथा अस्पष्ट लिखा हुआ है । इस हस्तलेख की प्रतिलिपि हमारे विद्यालय
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सूत्र के साथ [ ] कोष्ठक में जो सूत्र संख्या दी जा रही है, वह रामलाल कपूर ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित अष्टाध्यायी (संस्क० ७, सं० २०२८ ) के अनुसार है और यह सूत्र संख्या हमने दी है । हस्तलेख का पाठ [ अथ प्रथमोऽध्याय ]
[१|१|१७] उञः, ऊँ – योगविभागोऽत्र भाष्यकृतः । [१४] स्थानेऽन्तरतमः, स्थानेऽन्तरतमे पाठान्तरम्' । [१/३/२९] समो गम्यृच्छिभ्याम् - स्वरित्यादि प्रक्षिप्तम्' । [ १।४।१] आकडारात् - प्राक्कडारात् परं कार्यम् इति पाठा
न्तरम् ।
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१. कुतः पुनरियं विचारणा ? उभयथा हि तुल्या संहिता 'स्थानेऽन्तरतम उरण् रपरः' इति । द्र० – अत्रैव सूत्रे महाभाष्यम् ।
२. वृत्तिकृतेति शेष: ( नागेशमते ) । महाभाष्येऽत्र तदर्थबोधकवार्तिकद्वयदर्शनात् ।
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३. उभययाह्याचार्येण शिष्याः सूत्रं प्रतिपादिताः । केचिद् आकडारादेका संज्ञा' इति केचित् 'प्राक्कडारात् परं कार्यम्' इति । अत्रैव सूत्रे भाष्यं द्रष्टव्यम् ।