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.. [४] सहायता प्रदान की, उनके कतिपय विद्यमान पत्रों को छापा है, जिससे मैं उनके उपकार से कुछ सीमा तक उऋण हो सकू।
परिष्कार-पूर्व संस्करण में देश नगर व्यक्ति वा ग्रन्थों के नामों की सूचियां दो परिशिष्टों में प्रतिभाग अलग अलग दी थीं; उन्हें इस वार प्रतिभाग अलग अलग न देकर दो परिशिष्टों में इकट्टी दे दी है।
विशेष-प्रथम दो भागों का मुद्रण तो सितम्बर १९८४ तक हो गया था। तृतीय भाग का भी कुछ अंश छप गया था, परन्तु कार्याधिक्य के कारण अस्वस्थता बढ़ जाने से दो मास तक काम रुका रहा । अस्वस्थता में ही आगे का कार्य प्रारम्भ किया, परन्तु ज्यों ज्यों शीत बढ़ता गया, शारीरिक प्रतिकुलता बढ़ती गई। एक बार तो मन में पाया कि तीनों भागों में उदधत देश नगर तथा व्यक्तियों के नामों की तथा उद्धृत ग्रन्थों के नामों की सूची न छापू, परन्तु जीवन में यह अन्तिम संस्करण होने के कारण नाम-सूची और ग्रन्थ-सूची, जिनका निर्माण करना अत्यन्त परिश्रम एवं काल साध्य कार्य है, देना आवश्यक मानकर इन सूचियों को देकर तृतीय भाग पूर्ण किया है। इससे पाठकों को जो असुविधा हुई है उसके लिये मुझे खेद है, परन्तु अस्वस्थ अवस्था में भी कार्य किसी प्रकार पूर्ण हो गया, इसकी प्रसन्नता भी है । अंगला संस्करण देवाधीन है।
विविध शास्त्र पारङ्गत श्री पं० पद्मनाभ रावजी (प्रात्मकूर) ने ६ दिसम्बर १९८४ के पत्र में निम्न पुस्तकों का 'सं० व्या० शा० का इतिहास' ग्रन्थ में सन्निवेश करने का सुझाव दिया है (द्र० यही भाग, पृष्ठ १६७)१-प्राचार्य हेमचन्द्र और उनका शब्दानुशासन-एक अध्ययन,
डा० नेमिचन्द्र शास्त्री। २-शब्दार्थरत्नम् (दार्शनिक)- श्री तारानाथतर्कवाचस्पति ३- व्याकरणदर्शनभूमिका-श्री रामाज्ञा पाण्डेय ४- व्याकरणदर्शनपीठिका- " " ५-व्याकरणदर्शनप्रतिभा- " " ६-व्यासपाणिनिभावनिर्णय-म० न० सेतुमाधवाचार्य