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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास श्री स्वामी (भट्टि कवि का पिता) II. ४८२,१७१४८४,३० । श्रीहर्ष (नैषधचरितकार) I. ५२७,३ । श्रीहर्ष (=श्रीहर्षवर्धन' राजा) II. २८४,१३ । श्रीहर्ष मुनि (कातन्त्र दोपिकाकार) 1. ६४५,१८ । श्रुतकीति (परमेष्ठी प्रकाशसार, योगसार का कर्ता) Ii. १७८.२ श्रुतकीर्ति आर्य द्र० 'आर्य श्रुतकीति' शब्द । अंतधर (कात्यायन') I. ३२३,४॥३३४,९ । श्रुतपाल (काव्यादर्श टीकाकार) I. १६०,२७ । श्रुतपाल (कुण्डली-कार) I ४३०,१६ । श्रुतपाल (व्याकरणकार) I. ५२२,११६०६११४। श्रुतपाल (देवनन्दीय धातुपाठ-व्याख्याता) I. ६३५,८ । श्रुतपाल (? हैम व्याकरण में स्मृत) I. ६९६,११ । . श्रुखपाल (धातुपाठ व्याख्याता) १२०१७ । श्रुतिधर (वि० समकालिक वररुचि कात्यायन का नामान्तर) ___I. ४६५,२५॥ श्वभूति (पाणिनि का शिष्य ?) II: ४६३,२५ ।
श्वेतकेतु प्रौद्दालकि III. १५८,६ । .. श्वेतगिरि (विद्यासागर मुनि का गुरु) I. ५७३,१५ । श्वेतवनवासी (उणादिवृत्तिकार) I. १६३,१३३३६६,२५।४८०, '२३३५१६,७ । II. ६५,१८॥२०६,१११२११,४२१७,११॥
२२७,१०।२२८,४।२२६,३।३४४,१७४८३,१७१४८४,३ । श्वोभूति (अष्टाध्यायी-वृत्तिकार) I. ४८१,१३ ।
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१. द्र० 'हर्षवर्धन' शब्द। २. श्रुतिधर' शब्द भी द्रष्टव्य ।
३. देवनन्दीय धातुपाठ व्याख्याता श्रतपाल भी द्रष्टव्य। श्रतपरकात्यायन' शब्द भी द्रष्टव्य ।
(४. भम २, पृष्ठ ४६७, पं० १७ में 'श्वभूते' के स्थान में श्लोभूते' पढ़ें। इसी प्रकार इसी पृष्ठ में सर्वत्र 'श्वभूति' के स्थान में श्वोभूति' पड़े। 'श्वभूति' का निर्देश न्यासकार ने ७।१११ की काशिका की व्याख्या में किया है। द्र० भाग १, पृष्ठ ४८१, पं० १८।।