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बारहवां परिशिष्ट
६००,२६।६३४,२२।। II २७८,२६ ।
श्राशानन्द I. ६६४, ही
१९७
आश्वलायन I. २०७ १६१२७२,२१२७९,११२६४,७।। II. ३७१,१०।३८१,१६।३८२, ३।३८३,३|| III.१३४,१३। माहिक ( = पाणिनि ) I. १६३,२०१६७,१०। इंस्टिटट फ्रेंचिस द इण्डोलोजि ( पाण्डुचेरी) I. ४५ ३,१३। इटावा III. ८३ २३|
इण्टर नेशनल सेमिनार प्रोन पा पनि (पूना) I. २४८,३ । इण्डियन प्रेस (प्रयाग) I. ६३,२६ ।
इण्डियन रिसर्च इंस्टीट्यूट (कलकत्ता) III. ६७.६।
इण्डिया आफिस ( लन्दन ) पुस्तकालय ( लायब्ररी) ' I. २५६,२८।
४३८,१२।४४०,६।४५४,२६/४६८ २०।५३२,१४।५३७, १५।५९६,२४।७०५८१४।७२०,३०।७१६.१४ ।। II. १२१, २१।१६४,१।२६७,१।२७०,३३०८, ६।३२५, ११।३३३० १३।३३७.६।३४२,२५१३८८, ७ ४८०, ४।
इतरा ( = कात्यायनी 2 ) I. २७२/१७ इतिहास संशोधन मण्डल (पुना ) ३८५०४। इत्सिंग I. २४०, ४१३५८, ८ ३८६ १३३८७,४।३६० ३३।३६४, १७।४००,१८।४०१,२४०२,१११४४४, १४।४५० ३।५०१, १०/५०३,१४ ५८७, ३० ।
इन्दु (अष्टाङ्गसंग्रह का टीकाकार ) I. १०२, २०१३६१, ४/५१४, १६।५७०,१३ ।
१. ग्रन्थ में इसका निर्देश 'इण्डिया आफिस लायब्रेरी लन्दन' तथा 'इण्डिया ग्राफिस पुस्तकालय' नामों से भी हुआ है । हमने ऊपर सभी नामों की पृष्ठ संख्या दे दी है ।
२. याज्ञवल्क्य की पत्नी कान्यायनीय का नाम 'इतरा' था और उसका पुत्र ऐतरेय था । यह षड्गुरु शिष्य ने ऐतरेय ब्राह्मण की व्याख्या के प्रारम्भ में लिखा है ! ऐतरेय ब्राह्मण का प्रवचन कृष्णद्वैपायन व्यास और उसके शिष्यों प्रशिष्यों द्वारा किये गये शाखा प्रवचन से पूर्ववर्ती है । प्रत: यह लेख चिन्त्य है । द्र० भाग १, पृष्ठ २७२ ।